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________________ गुरुवाणी - ३ सिद्धचक्र का ध्यान १६७ सारे अनुष्ठान चेतना को बदलने के लिए ही हैं। पाँचों इन्द्रियों का पोषण करने के लिए जिह्वेन्द्रिय ही काम करती है । पहले बाह्य तप से जिह्वा को वश में करने का है । जिह्वा के वश में आने पर चारों इन्द्रियाँ शान्त हो जायेगी । उसके बाद संलीनता के द्वारा पाँचों इन्द्रियों को भीतर की तरफ मोड़ने का है। स्वाध्याय द्वारा जीव का उत्थान होगा। आज तो इस मानव देह का मूल्य ही क्या है? किसी दुर्घटना में मर गए..... . बीमा करवाया हुआ हो तो दो-पाँच लाख रुपये मिल जाते हैं अथवा सरकार की ओर से पाँच-पच्चीस हजार की मदद मिल जाती है.... सब ऊहापोह शान्त हो जाता है.... किन्तु शास्त्रकार कहते हैं कि यह जन्म तो महामूल्यवान है । इसका मूल्य तो कोई आंक ही नहीं सकता । ६. व्युत्सर्गः - वैभव जन्य पदार्थों का संक्षेप करना । आहार तप का वर्णन पहले कर चुके हैं। व्युत्सर्ग अर्थात् उपकरणों का तप । कम से कम वस्त्र, अलंकार और फर्नीचर रखो । आज यह तप पूर्णत: लुप्त हो जाने के कारण जीवन में उदारता आती ही नहीं है। धन और बातें हम हजम नहीं कर सकते। इन दोनों की हजम करने का कार्य बहुत ही कठिन है। किसी की बात सुनते ही हमें चटपटी लगती है कि कब मैं किसी न किसी को कह दूँ! पैसा भी ऐसी ही वस्तु है । वह भी आता है, तो बंगले की शोभा में या तन की शोभा में लगाकर ही चैन मिलता है । यदि ये भोग अपने वश में हो जाए तो यह सारा पैसा दीन-दु:खियों पर खर्च कर सकते हैं । व्युत्सर्ग क्या काम करता है, इस पर एक कथा आती है। एक के पुण्य से अनेक बच गए कमलपुर नगर में कमलसेन नाम का एक राजा था। उस नगर में एक नैमित्तिक आया । पुराने जमाने में नैमित्तिक लोग बहुत रहते थे । इनकी साधना भी शिखर पर रहती थी । सब कुछ किताबों में लिखा हुआ नहीं होता है । कोई मन्त्र की साधना के द्वारा तो कोई गुरु की आराधना
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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