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नौवाँ पद - नमो तवस्स गुरुवाणी - ३ में विचार किया कि सब स्थानों पर काम ही प्यारा होता है। हम रात-दिन दिमाग की कसरत करते रहते हैं अर्थात् स्वाध्याय करते रहते हैं, तब भी हमारी प्रशंसा नहीं होती और इन दोनों की प्रशंसा होती है। मन में यह विचार आते ही अपनी भावना से गिरे। पहले गुणस्थानक पर पहुँच गये और स्त्रीवेद कर्म का बंधन किया। दोनों काल धर्म प्राप्त कर ब्राह्मी और सुन्दरी बने । साधुओं की वैयावच्च करने वाले बाहु - सुबाहु भी कालधर्म प्राप्त कर भरत और बाहुबली बनें। पूजा की ढाल में आता है कि 'बाहुबली बल अक्षय कीनो ।' यह तप अत्यधिक महत्त्व का है । इसमें शरीर को झुकाना पड़ता है।
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४. स्वाध्याय :- स्वाध्याय अर्थात् स्वयं का अध्ययन । मनुष्य दूसरों का अध्ययन करने में ही लगा हुआ है। स्वाध्याय करेगा तभी स्वयं के दोष दिखेंगे न ! स्वाध्याय से यह ध्यान में आता है कि ऐसा करने से ऐसा होता है। उससे खोई हुई आत्मा, गिरी हुई आत्मा भी ऊँची आती है। प्रायश्चित् करने से यह फल मिलता है । विनय करने से लघुता प्राप्त होती है । वैयावच्च करने से यह लाभ होता है । यह सब कौन समझाता है ? स्वाध्याय ही न! परमात्मा के समीप कौन पहुँचाता है? पहले के पुरुष स्वयं के लाखों वर्षों के आयुष्य को भी स्वाध्याय के बल पर बिता देते थे। आज तो हमको यह २५ - ५० वर्ष भी बिताने हों तो भारी पड़ते हैं इसका कारण यह है कि स्वाध्याय प्राय: कर लुप्त हो गया है अथवा बहुत कम हो गया है। हाँ, बातों का स्वाध्याय आ गया है । पत्र-पत्रिका और मासिक पत्रिकाओं का स्वाध्याय करके हमने अपने हृदय को पत्थर जैसा कठोर बना लिया है। पहले तो किसी व्यक्ति की मौत के समाचार सुनते ही चौंक उठते थे, जबकि आज के पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों की मृत्यु के समाचार पड़ते हुए एक हाथ में चाय का कप और दूसरे हाथ में पत्रिका होती है। मन में किञ्चित् भी चिन्ता नहीं होती, किन्तु स्वाद लेते हुए चाय