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नौवाँ पद - नमो तवस्स
आसोज सुदि १३
तप के दो भेद
सिद्धचक्र की उपासना अर्थात् चेतना की उपासना। तुम्हारी चेतना में क्या है? तप की भावना है अथवा भोजन की भावना । चेतना में से ही संसार उत्पन्न होता है और चेतना में से ही मोक्ष का आविर्भाव होता है। दोनों का जन्म स्थान एक है, किन्तु एक भवभ्रमण का कारण है जबकि एक भवविराम का कारण है। उपवास करना कठिन लगता है, किन्तु जिसके चित्त में उपवास के प्रति आकर्षण होता है, उसको ऐसा लगता है कि अरे, उपवास कैसा सुन्दर तप है। खाने-पीने की कोई चिन्ता नहीं। यह शुद्ध विचार भी उपवास का फल दे सकता है। चारित्र के द्वारा आते हुए कर्मों को तो रोक लगी, किन्तु अन्दर रही हुई वासनाओं का क्या? ज्ञानी भगवंत कहते हैं कि तप द्वारा उस वासना को नष्ट किया जा सकता है। कर्म रूपी ईंधन को जलाने के लिए तप यह अग्नि है । तप के दो प्रकार हैं - १. बाह्य तप और २. अभ्यन्तर तप। बाह्य तप के छः भेद
१. अनशन २. उनोदरी ३. वृत्ति संक्षेप ४. रसत्याग ५. कायक्लेश ६. संलीनता।
१. अनशन :- अनशन अर्थात् खाना नहीं । एकासणा, उपवास को भी अनशन कहते हैं और यावज्जीव भोजन का त्याग करते हैं उसको भी अनशन कहते हैं। इस प्रकार इस तप की आराधना करनी चाहिए। भगवान् जानते हैं कि इस भव में मेरा मोक्ष होने वाला है, तब भी भगवान्