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________________ गुरुवाणी-३ १५३. दर्शन - ज्ञान - चरित्र के घर में छुपा दिया। राजा को खबर लगी कि, हार खो गया है। जाहिरात करी कि जिस किसी ने हार को चुराया हो वह वापिस दे जाए अन्यथा जिसके घर में से निकलेगा, उसको मृत्यु दण्ड की सजा दी जाएगी। सैनिकों ने चारों ओर खोजबीन की। प्रधान ने श्रेष्ठि के घर पर भी खोज करने के लिए आदमी भेजे । स्वयं ने ही जहाँ छुपाया था, वहीं स्वयं के आदमियों को खोजने के लिए भेजा। सेठ के घर हार मिल गया। सेठ को मृत्यु दण्ड की सजा घोषित की गई। प्रधान ने सेठ को कहा - जो तुम लबालब भरी हुई तेल की कटोरी को लेकर तुम्हारे घर से राजदरबार तक आ जाओ तो तुम मृत्यु दण्ड से बच सकते हो। उस समय ढोल-नगारे बजेंगे, किन्तु तेल की कटोरी में से एक बूंद तेल भी नीचे गिर गया तो उसी समय तुम्हारा शिरच्छेद कर दिया जाएगा और एक बूंद तेल भी नीचे नहीं गिरे और तुम राजदरबार में पहुँच जाओ तो तुम्हारी सजा माफ हो जाएगी। मृत्यु दण्ड के भय से सेठ ने इस बात को स्वीकार किया। तेल की कटोरी लेकर घर से निकला। चींटी की चाल से चलते हुए वह राजदरबार पहुँच गया। प्रधान पूछता है - सेठजी! मार्ग में आपने क्या देखा? सेठ कहता है - तेल की कटोरी के सिवाय मैंने कुछ नहीं देखा। प्रधान कहता है - तुम तो एक मात्र मृत्यु के डर से इतने भयभीत हो गए तो साधुलोग जो जन्ममरण के जंजाल से डर गए हैं, एक नहीं अनेक मृत्यु का भय उनके सन्मुख है। इस कारण से वे इस संसार के विषयों से अलिप्त बनकर साधना करते हैं। जिनको मृत्यु का भय लगता है, वे ही इस संसार के स्वाद से अलिप्त रहते हैं। तुम अपराधी नहीं थे, किन्तु तुमने कहा था कि साधुगण निर्लेप रह ही नहीं सकते। इसीलिए यह सब षड्यन्त्र रचा गया था। सभी ने जिनशासन की अनुमोदना की.... इसी प्रकार जिनशासन की प्रभावना करनी चाहिए। ५. तीर्थसेवा तीर्थ दो प्रकार के होते हैं :- १. जङ्गम तीर्थ और २. स्थावर तीर्थ।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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