SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-३ ____१५१ उपाध्याय - साधु - दर्शनपद जब लग में तब प्रभु नहीं, जब प्रभु तब मैं नहीं, प्रेम गली अति सांकरी वामें दो न समैं॥ दूसरे नम्बर की पूजा होगी तो तीसरे नम्बर की पूजा जीवन में आएगी ही। भगवान् पर बहुमान प्रगट होगा तभी सच्ची भक्ति आएगी। . समकित के दो आभूषण शेष रहे हैं, उनका विचार आगे। गुरुवचन में जिसकी श्रद्धा नहीं उसे स्वप्न में भी सुख की सिद्धि नहीं मिलती गुरु श्रद्धा यह महान वस्तु है, तीन तत्त्वों में भी गुरु तत्त्व का माहात्म्य अधिक है। संपे संपत सांपडे, संपे पामे सुख, संप विनाना मानवी, पळ पळ पामे दुःख। दहेरासर में जाओ तब-जिन भक्ति संसार के व्यवहार में रहो तब-जीव मैत्री एकान्त में रहो तब-आत्म भक्ति
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy