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________________ १५० उपाध्याय - साधु - दर्शनपद गुरुवाणी-३ ३. प्रभुभक्ति (भक्ति तीन प्रकार की) प्रभुभक्ति - जिनेश्वर की तरफ भक्ति। प्रभु के प्रति रागअनुराग होना चाहिए। जब जीवन में भक्ति प्रकट होती है, तब स्वयं ही जीवन को रङ्ग देती है। व्यसन के नशे की तरह भक्ति के रस का भी एक नशा होता है। भक्ति तीन प्रकार की है - १. पत्थर की पुतली समान। २. वस्त्रों की पुतली समान। ३. शक्कर की पुतली समान। १. पत्थर की पुतली समान - पत्थर की पुतली को अगर पानी में डूबाए रखोगे तो उसमें तनिक भी पानी का प्रवेश होगा क्या? जो भक्ति पत्थर की पुतली के समान होगी तो हृदय में उसका रस तनिक भी प्रवेश नहीं करेगा। वह हमारे दुर्गुणों को कैसे दूर करेगी? आज पूजाओं को देखो और भावनाओं को देखो। अधिकांशतः किरायदारों से ही भक्ति होती है! ऐसी भक्ति से क्या फायदा? २. वस्त्रों की पुतली समान - वस्त्रों की पुतली को पानी में डालोगे तो वह सम्पूर्ण रूप से पानी में भीग जाएगी। भक्ति भी इसी प्रकार की होनी चाहिए कि मनुष्य उस भक्तिरस से निर्मल हो जाए। स्वभाव में परिवर्तन आ जाए । दोषों का ज्ञान हो जाए। भक्तिरस में तरबतर हो जाए। ३. शक्कर की पुतली समान - शक्कर की पुतली को पानी में डालोगे तो वह पिघलकर पानी के साथ एकमेक हो जाएगी। उसी प्रकार भक्त प्रभु की भक्ति में एकाकार हो जाता है। आनन्दघनजी महाराज ने स्तवन की चौबीसी बनाई थी, उसमें बावीसवें भगवान श्री नेमिनाथ का स्तवन बनाते हुए भगवान में ऐसे लीन हो गए जैसे राजुल, नेमिनाथ में समाविष्ट हो गयी। वैसे ही आनन्दघनजी महाराज भी भगवान् में समा गए। बाद के दो स्तवन की अन्य ने रचना कर उसमें जोड़ दिए हैं। मीरा, नरसिंह मेहता, सन्त कबीर आदि की भक्ति शक्कर की पुतली के समान थी।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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