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उपाध्याय - साधु - दर्शनपद गुरुवाणी-३ भूख-प्यास और मान-अपमान को सहन करने वाले ऐसे महात्माओं से ही यह शासन चल रहा है। विश्व-कल्याण के लिए ही शान्तिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ जैसे महापुरुषों ने चक्रवर्ती पद की ऋद्धि को त्याग दिया है। महावीर स्वामी भगवान् ने बारह वर्ष तक घोर तपश्चर्या की है।
___ साधु पद की आराधना काले रङ्ग से होती है। क्योंकि उनका वर्ण भी काला होता है। तप-तपस्या करने से वे श्याम वर्ण वाले बन जाते हैं। काले रङ्ग का अत्यधिक महत्त्व है। किसी शासन विरोधी को उखाड़ फेंकना हो तो काले रङ्ग की ही उपासना की जाती है। तांत्रिक लोग काले रंग की साधना से अच्छे-अच्छों का उच्चाटन कर देते हैं। काले रङ्ग की साधना अच्छे-अच्छों का उच्चाटन कर देती है। इस समय तो केवल धार्मिक अर्थ ही रहा। तांत्रिक अर्थ पूर्ण रूप से छूट गया। यही कारण है कि शासन पर चारों तरफ से आक्रमण किया जा रहा है। गोरजियों (यतिवर्ग) के पास में मन्त्र-तन्त्र, ज्योतिष और अनेक विद्याएँ थी। गोरजियों के समाप्त होते ही सबकुछ समाप्त हो गया। ऐसे साधकों के कारण लोग भी डरते थे। साधुपद का दोहा आता है कि साधु किसे कहें?
'अप्रमत्त जे नित्य रहे, नवि हरखे नवि सोचे रे। साधु सुधा ते आत्मा, शुं मुंडे शुंलोचे रे॥'
अर्थात् साधु सदा ही अप्रमत्त रहता है। जैसे-तैसे करके सारा दिन बिताने वाले नहीं होते हैं। चाहे जैसे भी भक्त उनके पास आते हों, उनको वांछित मान-सम्मान भी देते हैं, किन्तु उन साधुओं को इस पर तनिक भी हर्ष नहीं होता है। आज की तरह पत्र-पत्रिकाओं में यह नहीं छपता कि अमुक मन्त्री मिलने के लिए आए थे अथवा नासिक के बैण्ड-बाजों से उनका भव्य प्रवेशोत्सव हुआ था। साधु विज्ञ और चतुर होना चाहिए कि यह मान-सम्मान मुझे नहीं मिल रहा है, बल्कि प्रभु के इस वेश को मिल रहा है। अनजाने गाँव में पहुँच जाने पर भी सिर्फ वेश को देखकर तत्काल ही उपाश्रय खोल दिये जाते हैं.... साहेब वहोरने के लिए पधारें.... साहेब