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________________ गुरुवाणी-३ तीसरा पद - आचार्यपद क्रिया के मूल तक पहुँचना चाहिए। केवल रूढ़ी के अनुसार करने से उसका सम्पूर्ण फल नहीं मिल सकता.... क्रिया में एकाग्रता लाओ.... आज हम नवपद की आराधना में अर्थात् नौ दिन आयम्बिल करना, कोई एक धान से करता है तो कोई एक द्रव्य से करता है। इससे आगे बढ़कर नवपद की पूजा पढ़ाई जाती है। उससे भी आगे सिद्धचक्र महापूजन करवाया जाता है.... बस इतने में ही हमने उत्कृष्ट आराधना कर ली हो ऐसा संतोष होता है, किन्तु नहीं, इतने मात्र से संतोष नहीं मिल सकता.... नवपद में रहे हुए प्रत्येक पदों के गुणों तक पहुँचना होगा, उसकी आराधना में तन्मय बनना होगा.... तिरने के तीन स्थान - पर्वाधिराज, मन्त्राधिराज, तीर्थाधिराज किसी के सुख जैसा सुख मुझे मिले ऐसी याचना करने वाला भिखारी वृत्ति का होता है। किसी के सुख को लूटने वाला व्यक्ति शिकारी वृत्ति का होता है। स्वयं के सुख को दूसरे के सुख के लिए लुटा देने वाला मुनि वृत्ति का होता है।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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