________________
तीसरा पद - आचार्यपद
गुरुवाणी-३ ज्ञानी और बाह्य तथा अभ्यन्तर आचारों में सुदृढ़ होते हैं। जिनेश्वर भगवान् रूपी सूर्य भी अस्त हो गया और सामान्य केवली भगवन्त रूपी चन्द्र अस्त हो गया। ऐसी दशा में अमावस्या की घोर अन्धेरी रात के समान ही अंधकार फैलेगा न! अमावस की अंधेरी रात में तुम क्या करोगे? दीपक जलाओगे न! ये आचार्य भगवान भी दीपक के समान हैं, इसीलिए इनका वर्ण भी पीला है। वे शासन में राष्ट्रपति के स्थान पर हैं। इस शासन को चलाने का कठिनतम कार्य आचार्य भगवन्त का है। आचार्य पद यूं ही नहीं मिल जाता? उसके लिए तो कितना ही भोग देना पड़ता है। मानदेवसूरि महाराज ____ लघु शान्ति के प्रणेता महाराज की बात है। उनकी साधना बहुत उन्नत थी। उनकी साधना से आकर्षित जया और विजया नाम की दो देवियाँ उनकी सेवा में ही रहती थीं। उनके गुरु महाराज ने विचार किया कि मानदेव, ज्ञानी हैं, साधक हैं, गम्भीर हैं, इसीलिए आचार्य पद के लिए बराबर योग्य हैं । उस समय में समग्र संघ के ऊपर एक ही आचार्य रहता था। आचार्य पद प्रदान करने का महोत्सव प्रारम्भ हुआ। लोगों में प्रबल उत्साह था। पद प्रदान का दिन भी आ गया। विधि प्रारम्भ हुई। सूरिमन्त्र देने का समय आ पहुँचा। उस समय गुरु भगवन्त की दृष्टि मानदेवजी महाराज के कन्धे पर बैठी हुई दो देवियों पर गई। देवियाँ जिनके समीप रहती हों उनको आचार्य पद नहीं दिया जाता। वे कभी भी मार्गच्युत हो सकते हैं । विशुद्ध नहीं रह सकते। क्या करना? भले ही संघ समूह इकट्ठा हो गया हो किन्तु अयोग्य को यदि आचार्य पदवी दी जाए तो वह शासन के लिए हितकारी नहीं होगा। मैं दोषी बनूँगा। तत्काल ही निर्णय लिया - आचार्य पद नहीं देना है। मिनटों की गणना हो रही है, समय हो गया है, गुरुदेव मौन बैठे हैं, इस कारण से सभा भी स्तब्ध हो गई है। समय हो जाने पर भी आचार्य महाराज मौन क्यों बैठे हैं? पूज्य मानदेवविजय महाराज की दृष्टि गुरुमहाराज की मुखाकृति पर पड़ी।