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गुरुवाणी-३ वीतराग की वाणी और दर्शन मन की क्या स्थिति होती है? चढ़ते समय मनुष्य आकुल-व्याकुल बन जाता है किन्तु ज्यों ही बुखार उतरने लगता है त्यों ही एकदम राजी-राजी हो जाता है। वेदना के अभाव में मनुष्य प्रसन्न होता है। सिद्ध के जीव परमानन्दी हैं। जबकि संसार के जीव अत्यन्त क्लेशों से युक्त हैं। सिद्ध का वर्ण लाल क्यों?
नमो सिद्धाणं पद की आराधना करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। सिद्ध का वर्ण लाल है। क्योंकि उनके समस्त कर्म जल/नष्ट हो चुके हैं इसीलिए उनकी उपासना लाल रङ्ग से करने में आती है। इस रङ्ग में वशीकरण की एक शक्ति है। सारा संसार भी इसी वशीकरण पर ही चलता है न! देखो, स्त्रियों की चुनड़ी का रङ्ग भी लाल, बिन्दी का रङ्ग भी लाल। स्त्रियाँ कपाल में लाल रङ्ग की ही बिन्दी क्यों लगाती है? ताकि उस पर उसके पति की हमेशा नजर पड़ती रहे। वह उसकी तरफ आकर्षित रहे। जबकि आज तो काली, नीली और पीली बिन्दी भी दिखाई देती है। इन लोगों को कौन समझाए कि नीली, पीली और काली बिन्दी से तुम्हारा संसार भी नीला-पीला हो रहा है। इस पद की उपासना से ऐसी वशीकरण शक्ति उत्पन्न होती है कि वह अच्छे-अच्छे राजा-महाराजाओं को भी वश में कर सकते हैं। किन्तु आज के मानव को गहराई में उतरने का अवकाश ही कहाँ है? सबकुछ पुस्तकों में ही सुरक्षित है। आराधनाएं बहुत करते हैं। जीवन में अनेक ओलियाँ करते हैं। किन्तु एक पद की भी सच्ची उपासना नहीं कर सके हैं। तुम आयम्बिल करते हो बहुत अच्छी बात है किन्तु हमें इस आयम्बिल में प्राण फूंकने है। तप के साथ जप भी चालु रखो।
तन पवित्र सेवा करने से। धन पवित्र दान देने से। मन पवित्र भजन करने से। ये त्रिविध कल्याण करने के लिए है।