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________________ वीतराग की वाणी और दर्शन आसोज सुदि ९ दुर्लभ ऐसे मानव भव को तुमने पाया है तो अब सिद्धचक्र की आराधरा अच्छी तरह से कर लो। यह मानव - जन्म परमात्मा को प्राप्त करने के लिए है । पदार्थों को प्राप्त करने के लिए नहीं । मनुष्य होकर जन्म लिया है और सच्चे अर्थ में मानव बनना है । तुम्हारे जीवन में मानवता है या नहीं यह महत्व का है। भगवान के रोम-रोम में यह गुण बसा हुआ था। इस गुण के कारण ही जगत् के शुभ परमाणु आकर्षित होकर उनकी तरफ आते थे। भूखी-प्यासी वृद्धा की कथा भगवान की वाणी में अपूर्व शक्ति है। भूख और प्यास को भूला दे ऐसी अत्यन्त मधुर होती है । एक कथानक आता है। एक अत्यन्त वृद्ध माता थी, जो आश्रय रहित थी । कोई कमाने वाला नहीं था, इस कारण वह स्वयं एक सेठ के यहाँ लकड़ियों का गठ्ठा देकर भोजन प्राप्त करती थी । एक समय गर्मी के दिन थे । वृद्धा माँ जंगल में लकड़ी लेने के लिए जाती थी । बेचारी अत्यन्त वृद्ध होने के कारण प्रतिदिन की अपेक्षा कुछ कम लकड़ियाँ लेकर सेठ के घर आती है। सिर पर तो आग बरस रही है। वृद्धा माँ पसीने से तर-बतर है। आकर ज्यों ही लकड़ी का गठ्ठा रखती है त्यों ही सेठानी क्रोधित होती है.... आज इतनी ही लकड़ियाँ क्यों ? जाओ, दूसरी और लकड़ियाँ लेकर आओ तभी भोजन मिलेगा। धन मनुष्य को अत्यन्त निष्ठर बना देता है । G दुःखीना दुःखनी वातो सुखी ना जाणी शके, जो सुखी जाणी शके तो दुःख विश्वमां नाटके । [दु:खी के दुःख की बात सुखी नही जान सकता। अगर सुखी जान ले तो, दुःख संसार में नहीं टिक सकता ] वृद्धा बहुत ही थकी हुई
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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