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________________ १२५ गुरुवाणी-३ अरिहंत का नाम जीवन में प्रभु नहीं मिलने कि व्यथा उत्पन्न होगी तक उनके नाम में, ध्यान में, एक अलौकिक आनन्द की अनुभूति होगी। एक कहावत है - सब रसायन हम करी, प्रभु नाम सम न कोय, रंचक घटमें संचरे, सब तन कंचन होय। प्रभु नाम की औषधि के समान कोई दूसरी औषधि नहीं है। यह थोड़ा सा भी जीवन में उतर जाए तो जीवन कंचन जैसा बन जाए। जगत में जितने प्रकार के आनंद है वे सब उत्तेजित करने वाले हैं। उत्तेजना समाप्त होने पर वह पूर्णतः अशक्त हो जाता है। हमारा कोई प्रिय व्यक्ति अथवा जिस पर हमने शर्त लगाई हो वह व्यक्ति क्रिकेट में जीत जाए उस समय क्षण मात्र के लिए कितना आनन्द होता है और वहीं यदि दूसरा व्यक्ति जीत जाए तो हमारा आनन्द गायब हो जाता है, खेद में बदल जाता है। ऐसा ही हमारा आनन्द क्षणिक है। जबकि प्रभु के भजन का आनन्द कभी भूला नहीं जा सकता। भोजन में कोई अच्छी वस्तु खाएंगे तो कुछ क्षणों के लिए उसका आनन्द रहता है और उससे जो पेट खराब हो जाए तो क्षण का सुख और मण का दुःख। जबकि प्रभु के आनन्द में मण का सुख और क्षण का दुःख। तीर्थंकर परमात्मा सब क्षेत्रों में नहीं होते हैं किन्तु उनका नाम तो होता ही है। देवलोक में रहे हुए देव भी भगवान् के नाम से तिर जाते है ! वहाँ भगवान् जाने वाले नहीं है किन्तु उनका नाम तो सभी जगह है। मांगे बिना न मिले दान.... भाग्य बिना न मिले मान.... खेती बिना न मिले धान.... गुरु बिना न मिले ज्ञान....
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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