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________________ १२३ गुरुवाणी-३ अरिहंत का नाम अब चन्दन के व्यापारी के विचार भी बदले। राजा बहुत काल तक जीवित रहे तो अच्छा! व्यापारी के विचार बदले तो राजा के भी विचार बदले। राजा का उस पर यकायक प्रेम भाव उमड़ा। राजसभा में उसकी उपस्थिति अच्छी लगने लगी.... इसलिए राजा ने मन्त्री से पूछा - ऐसा कैसे हो गया? उसके प्रति मेरे विचार कैसे बदल गये । मन्त्री ने सत्यवस्तु स्थिति राजा को बता दी। विचारों का एक प्रबल साम्राज्य है। हजारों मील दूर बैठा हुआ आदमी भी एक दूसरे के आकर्षण से अचानक आकर मिलता है। चेतना में कोई अन्तर नहीं होगा। उसी प्रकार काल और क्षेत्र में भी अन्तर नहीं होता। भगवान और हमारे बीच में क्षेत्र और काल का कितना बड़ा अन्तर है, अन्तर होते हुए भी इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं । चेतना सर्वव्यापी है। हम किसी को बहुत याद करते हैं, तो वह मनुष्य हमको जल्दी से आकर मिल जाता है। हम भले ही दूर हों तब भी उसके मन में मिलने की प्रतिध्वनि पड़ती ही है। अरिहंत शब्द भी महान् है महापुरुष कहते हैं कि अरिहंत तो महान् है ही, किन्तु अरिहंत का नाम भी महान है। भगवान जब विचरण कर रहे होंगे तब उनके दर्शन और वाणी से लोग तिर गये होंगे। किन्तु आज हम उनके नाम से ही तिर जाते हैं। किसी के अन्तिम समय में लोग कहते हैं कि इसको नवकार मन्त्र सुनाओ.... भगवान के नाम का स्मरण कराओ.... उनके नाम से ही सद्गति होगी। नाम में भी कितनी शक्ति होगी? नरसिंह मेहता ने कहा है कि 'रटण कर रटण कर कठण कलिकालमां दाम बेसे नहीं काम सरशे' अर्थात बिना पैसे ही स्वयं का काम सुधर जाता है, ऐसी महान शक्ति प्रभु के नाम में है। 'नमो अरिहंताणं' इसका जाप करते-करते 'ये केवल अक्षर मात्र हैं ऐसा न समझें अपितु ये अक्षर ही साक्षात् परमात्मा हैं।' पदमयी देवता! ऐसा समझकर स्मरण करो। उपासना में देश और काल का अन्तर नहीं होता। जाप करते-करते ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि भगवान मेरे चारों ओर हैं। मेरे साथ ही हैं, मुझे क्या चिन्ता। ऐसी
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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