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अरिहंत का नाम
गुरुवाणी-३ व्यापार अच्छा चला किन्तु चन्दन का उपयोग कितना....? इस कारण से धीरे-धीरे उसका व्यापार बन्द होने लगा। उसने सारी पूंजी तो इसमें लगा दी थी। चन्दन का उपयोग नहीं होता था इस कारण से व्यापारी के मन में प्रश्न हुआ। उसके मन में एक विचार आया कि यदि राजकुल में किसी व्यक्ति का मरण हो जाए तो उसकी चिता जलाने के लिए मेरा चन्दन बिक सकता है। मन में प्रतिदिन इस प्रकार के दुष्ट विचार चलते रहते थे। राजसभा में जाता है, उसके चारों तरफ दुष्ट विचारों के परमाणु फैले हुए हैं। देखो, विचार की प्रतिध्वनि कैसी होती है? यकायक राजा के मन में भी उसके लिए द्वेष के विचार आए। उसके सामने नजर उठाना भी राजा को रूचिकर नहीं लगता था। राजसभा में मत आओ, ऐसा कहने की इच्छा होती थी, किन्तु बिना कारण ही सम्बन्ध कैसे बिगाड़े? कभी तो इसको मार डालूं ऐसे मन में विचार आते थे। राजा ने अपने हृदय के विचार मन्त्री को बतलाए। मन्त्री ने विचार किया कि यकायक ऐसे विचार कैसे आए? व्यापारी का कोई अपराध नहीं फिर भी राजा के मन में ऐसे दुष्ट विचार आते हैं तो क्यों? मन्त्री हमेशा चतुर और विचक्षण होते हैं। वह व्यापारी के यहाँ गया और पूछा - व्यापार कैसा चल रहा है? व्यापारी ने भी बिना छिपाए हुए अपनी सारी स्थिति मन्त्री के समक्ष रख दी। मन्त्री समझ गया कि राजा को इसके प्रति खराब विचार क्यों आए? इस व्यापारी के मन में खराब विचार चल रहे हैं इसलिए राजा के मन में भी ऐसे विचार उत्पन्न हुए। आत्मा यह एक दर्पण है। उसमें उसका प्रतिबिम्ब तुरन्त पड़ता है। तुम्हारे विचारों की प्रतिध्वनि सामने के हृदय में भी पड़े बिना नहीं रहेगी। मन्त्री राजा के पास पहुँचा है और कहता है कि राजन्, आप तो महाराजाधिराज हैं। दुनिया में सबके यहाँ खाना, कोयला एवं लकड़ी से ही बनता है। आप एक विशिष्ट व्यक्ति हैं । अतः आपके यहाँ चन्दन की लकड़ी से ही रसोई बननी चाहिए। राजा ने तत्काल ही इस बात को स्वीकार कर लिया। चन्दन के व्यापारी के वहाँ से इकट्ठा ही चन्दन खरीद लिया। व्यापार अच्छी तरह से चलने लगा।