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________________ १२१ गुरुवाणी-३ अरिहंत का नाम भी नहीं कर सकते वैसी घोर तपश्चर्याएं होती हैं । जैसे विचार होते हैं वैसे ही पुद्गलों को मन खेंच लेता है। इस कलयुग में अस्पताल को देखों....कैसे परमाणु फैले हुए होते हैं? बहुत से डॉक्टर ऐसे निर्दय होते हैं कि बीमार को देखकर उसको कैसे लूट सकुं यही भावना रखते हैं - अरे, किसी के जवान लड़के की मौत हो गई हो, सारे स्वजन ढार-ढार कर रो रहे हों, उस समय ऐसे निर्दयी डॉक्टर कहते हैं कि पहले हमारे बिल का चुका दो उसके बाद ही तुम इस मृत देह को ले जा सकोगे। ऐसे क्रूर परिणामों के पुद्गल वहाँ चारों तरफ व्याप्त होते हैं। ऐसे वातावरण का मनुष्य पर भी शीघ्र ही प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार किसी मन्दिर में जाओ, भक्ति के रस में भावना चल रही हो, तथा सब एक मन होकर तन्मय हो रहे हों वहाँ हमारी भावना कैसी बन जाती है। कुछ समय के लिए तो हम भी प्रभु में डूब जाते हैं। 'मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका मन है।' अच्छे से अच्छे विचार करके मोक्ष में भी जा सकते हैं और निम्न स्तरों के विचारों से नरक में भी जा सकते हैं। हमारे जीवन में दो वस्तुओं की कमी है, एक भावना और दूसरी साधना।आज मनुष्य का मन बहुत ही संकुचित बन गया है। दूसरे का भला हो इसके लिए सोचने को भी हम तैयार नहीं है। भगवान की परकल्याण की भावना है, अतः उसकी प्रतिध्वनि भी वैसी ही पड़ती है। विचारों की प्रतिध्वनि - चन्दन का व्यापारी एक नगर में चन्दन का व्यापारी रहता था। चारों ओर उसकी ख्याति फैली हुई थी। राजा भी समय-समय पर उसके वहाँ से चन्दन खरीदता था। उसका व्यापार अच्छा चल रहा था। उसने अपनी पूंजी चन्दन में लगा दी थी। चन्दन खरीदकर उसने भण्डारों को भर दिया था। ऐसा ख्यातिमान व्यापारी होने के कारण उसकी राजसभा में भी राजा के साथ बैठक थी। चन्दन का मूल्य भी अधिक था.... प्रारम्भ में तो उसका
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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