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________________ अरिहंत का नाम आसोज सुदि ७ मानवता बड़ा धर्म है __ नवपद में मुख्य स्थान पर अरिहंत हैं। मनुष्य महान् नहीं किन्तु मनुष्य की भावना महान है। एक-एक तीर्थंकर परमात्माओं के जीवन देखोगे तो तुम्हें उनकी उच्च भावना का ख्याल आएगा। भगवान नेमिनाथ पूर्व जन्म में पति-पत्नी के रूप में जंगल में जा रहे थे। वहाँ जंगल में किसी गुफा में कोई महात्मा कायोत्सर्ग ध्यान में रहे हुए थे। महात्मा एकदम गिर प..... गिरने की आवाज उन दोनों ने सुनी। आवाज सुनकर दोनों गुफा में दौड़कर गये। महात्मा को बिठाया, उनकी सेवा शुश्रूषा की। बस, इस छोटे से प्रसंग मात्र से उन्होंने बोधिबीज/सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया। दूसरे को किस प्रकार सहायक रूप हो सकते हैं । यही उनके रक्त के अणु-अणु में व्याप्त था। हम तो यदि मनुष्य अन्तिम श्वास ले रहा हो तो भी उसके सामने खड़े नहीं होते है.... आज देखते हैं कि तुम किसी बस में बैठे हो मार्ग में कोई दुर्घटना हो जाती है। कितने ही मनुष्य मर जाते हैं । तुम्हारी बस को वहाँ कुछ देर रुकना पड़े और तुम्हें जल्दी पहुँचने की उतावल भी है। उस समय तुम क्या विचार करते हो? सामने कितने ही मनुष्य मरे पड़े हों तब भी तुम्हारा हृदय तनिक भी कम्पित होता है क्या.... नहीं, तुम्हें तो तुम्हारे काम में देरी हो रही है इसकी ही चिन्ता रहती है। जबकि ऐसे महापुरुषों के रग-रग में दूसरों के दुःख को दूर करने की अभिलाषा बनी रहती है। ९ वें भव में वे ही पति-पत्नी, नेमिनाथ-राजुल बनते हैं। अच्छे काम में दिया हुआ साथ मनुष्य के लिए कितना सहयोगी होता है। संसार के सारे सम्बन्ध क्षणिक होते हैं। एक जन्म के सम्बन्ध भी मृत्यु तक नहीं रहते हैं। तो अनेक जन्मों के सम्बन्ध कैसे रह सकते हैं? पतिपत्नी, माता-पुत्र. और पिता-पुत्र ये सम्बन्ध प्रायः करके जन्म के अन्त
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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