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________________ ११८ सिद्धचक्र के व्याख्यान गुरुवाणी - ३ करवा रहा था। महाराष्ट्र में जाता है वहाँ कावेरी तीर्थ स्थान है। लोगों को पूछता है । कावेरी कहाँ आई है ? कावड़ में माता-पिता को बिठाकर ले जाते हुए श्रवण को लोग कहते हैं - कावेरी-कावेरी क्या करते हो? तुम स्वयं ही कावेरी रूप हो। तीर्थ से तुम नहीं, तुमसे तीर्थ पवित्र होगा । तुम्हारी माता - पिता की ओर अजोड़ भक्ति ही तीर्थ स्वरूप है। आज तो यह सबकुछ विलुप्त हो रहा है । हमारे देश में तो कुछ है भी किन्तु अमेरिका आदि देशों में तो १६ वर्ष की अवस्था होते ही पुत्र माता-पिता को छोड़ देता है, उसके बाद तो किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रहता है। माता-पिता की भक्ति यह पुण्यबन्ध का कारण है। श्रवण माता-पिता को लेकर युद्ध स्थल के मैदान से जाता है । जिस स्थान पर अनेक युद्ध और संहार हुए है। जहाँ मारो - काटो के विचारों के पुद्गल ही चारो तरफ फैले हुए हैं। वहाँ से निकलते हुए । मातृभक्त श्रवण के विचार एकदम पलटे । उसको लगा कि यह बोझ जिन्दगी भर मुझे ही उठाना है क्या? ऐसे तो मैं मर जाऊँगा । यदि ये माँ-बाप मरण को प्राप्त हो जाए तो मेरा छुटकारा हो जाए। देखो, विचारों का कैसा प्रभाव हुआ? इन्हीं विचारों में वह श्रवण उस स्थान को पार कर गया। उसी समय उसके विचारों ने पलटा खाया। अरे, यह तूने क्या विचार किया? माता-पिता का मेरे ऊपर कितना उपकार है। सारे विश्व में विचार के परमाणु फैले हुए हैं। बहुत से लोगों के विचार बहुत ही उज्ज्वल होते हैं और उन विचारों के कारण उनके मुख पर तेजस्विता की आभा फैली हुई नजर आती है। जबकि अनेक मनुष्यों के विचार दूषित होते हैं तो उनके मुख पर मानों काली स्याही लगा दी हो, वैसा ही उनका मुरझा हुआ काला चेहरा नजर आता है। विचारों में एक अलौकिक शक्ति होती है। आरोग्य का विचार करोंगे तो रोग रहित हो जाओगे और यदि तुम प्रतिसमय रुग्णता के विचार करोगे तो अच्छे होते हुए भी बीमार हो जाओगे ।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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