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सिद्धचक्र के व्याख्यान
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गुरुवाणी - ३ कैसे स्वार्थ पूर्ण और क्षणिक होते हैं। पृथ्वीराज चौहान संयुक्ता नाम की स्त्री के मोह में डूबकर इस भारत वर्ष को हार गया।
समुद्र में बड़े-बड़े आवर्त्त (चक्रभ्रमरी) होते हैं। जिसके अन्दर कोई भी यान या नौका आ जाए तो डूब ही जाती है । उसी प्रकार इस संसार रूपी समुद्र में भी बड़े-बड़े आवर्त्त हैं। मोह के चक्र में जो फंस जाता है, बरबाद / नष्ट हो जाता है। ब्रिटिश साम्राज्य का कोई राजा एक विधवा के चक्कर में फंस गया। ब्रिटिश जनता ने कहा या तो सत्ता छोड़िये अथवा विधवा को छोड़िए ? मोह के चक्र में वह ऐसा फंस गया कि उसने ब्रिटिश राज्य की सत्ता छोड़ दी। सत्ता से वह नीचे उतर गया । ब्रिटिश राज्य चारों तरफ फैला हुआ था। कहा जाता था कि इस राज्य में सूर्य अस्त होता है कह नहीं सकते। ऐसे समर्थ राज्य का स्वामी होते हुए भी वह विधवा के मोह में फंस गया। संसार की समुद्र के साथ ही तुलना की गई है। समुद्र को पार करना हो तो किनारा चाहिए ही । संसार समुद्र को पार करने के लिए अरिहंत परमात्मा तीर्थ की स्थापना करते हैं इसीलिए वे तीर्थंकर कहलाते हैं।
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तीर्थस्थान का महत्व किस लिए है? क्योंकि तीर्थस्थान अधिकांशतः सद्विचारों से ही परिपूर्ण होते हैं। मन्दिर में जितने समय बैठते हैं उतने समय तक दूषित विचारों से दूर रहते हैं । दादा के दर्शन करने के लिए जाते हैं, तो प्रायः हृदय में सुविचार ही आते हैं। क्योंकि वातावरण का प्रभाव है। किसी वेश्या के स्थान के पास से गुजरते हैं तो दूषित परमाणुओं के व्याप्त होने के कारण हमारे शुभ विचार भी अशुभ बन जाते हैं। स्वामी विवेकानन्द के लिए कहा जाता है कि मार्ग में चलते हुए बीच में सिनेमाघर आ जाता तो वे उस मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग पर चले जाते । सिनेमाघर की सीमा समाप्त होने पर वे उसी मार्ग पर आ जाते । मातृ-पितृ भक्त श्रवण
मातृ-पितृ भक्त श्रवण के जीवन में भी विचारों से एक प्रसंग बना था । श्रवण माता-पिता को कावड़ में बिठाकर तीर्थ स्थानों की यात्रा