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सिद्धचक्र के व्याख्यान
गुरुवाणी-३ हमारे लिए बहुत कठिन बन गया है। मिथ्या का आवरण इतना अधिक प्रगाढ़ है जिसके कारण हम हमारे में रहे हुए क्रोध और मान की भूख को देख नहीं पाते। नाम और मान के पीछे यह दुनिया पागल बनी हुई है। समुद्र के भीतर चार पाताल कलश होते हैं। उनमें वायु भर जाने से समुद्र में एकदम तूफान आता है। उसी प्रकार इस संसार रूपी समुद्र में क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी चार पाताल कलश हैं। उसमें से जब क्रोध आदि का प्रचण्ड उछाल आता है तो अच्छे-अच्छे तपस्वियों ओर त्यागियों को भी वह दूर फेंक देता है। गीता में भी कृष्ण ने कहा है - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत्॥ नरक के तीन दरवाजे हैं - काम, क्रोध और लोभ। आज अधिकांशतः अनर्थों का आवीर्भाव इन तीन कारणों से ही होता है। कामवासना के कारण ही पाप का मार्ग
अभी कुछ दिन पहले ही समाचार पत्र में एक घटना छपी थी। तीन जिगरी मित्र थे। एक दूसरे को मिले बिना चल नहीं सकता था। ऐसा कह सकते हैं कि जीव एक था और उनके शरीर अलग-अलग। ऐसी मित्राचारी थी। एक समय एक मित्र की बहन के साथ दूसरे मित्र की
आँखें लड़ गई। धीरे-धीरे उन दोनों के बीच में प्रगाढ़ प्रेम पनपता गया। दूसरे मित्र के साथ भी उसके सम्बन्ध बने। स्त्री एक और उसके चाहने वाले दो बन गए। एक दिन बात-बात में एक मित्र ने कहा कि मुझे तुम्हारी बहन के साथ प्रेम हो गया है। तुम ऐसी व्यवस्था करो कि हम दोनों का विवाह हो जाए। उसी समय दूसरा मित्र बोला कि इसकी बहन के साथ तो मेरा प्रेम है। उसके साथ तो विवाह मुझे ही करना है। दोनों मित्रों के बीच में विवाद चला। कुछ दिन बाद पहले मित्र ने दूसरे मित्र को अमूक स्थान पर मिलने के लिए बुलाया। मित्रता के कारण सरल स्वभाव से वह वहाँ मिलने गया । तत्काल ही तीक्ष्ण शस्त्रों से उसका खून कर दिया। किसके कारण से? कामवासना के कारण ही हुआ न! सम्बन्ध