________________
११०
सिद्धचक्र के व्याख्यान गुरुवाणी - ३ रूपये दिये। उसके कारण उसका संकटकाल टल गया। उस समय वह बोलेगा कि सेठ ने मुझे बचा लिया। उसके उपकार को वह नहीं भूलता है । वास्तव में तो उसको रूपयों ने ही बचाया था न ! यदि सेठ न होता तो रूपये कहाँ से मिलते? इसी प्रकार धर्म से भव समुद्र को पार किया जा सकता है यह सच्ची बात है, किन्तु धर्म को बताने वाले कौन है? अरिहंत परमात्मा ही है न ! जो ये नहीं मिले होते तो हमारे हाथ में धर्म आता ही नहीं। धर्म तो मियांभाई भी करते हैं, पर कैसा? डूबाने वाला ही न ! अतः मनुष्य शान्त चित्त से विचार करे तो उसको अरिहंत परमात्मा की तरफ बहुमान जगे बिना नहीं रहेगा। गुरु भी अरिहंत द्वारा धर्म स्थापना के बाद ही इसमें जुड़े हैं न ! गौतम स्वामी भले ही शासन को चलाने वाले कहे जाते हैं किन्तु जो भगवान महावीर न मिले होते तो होम-हवन ही करते होते न? ऐसे गुरु की भेंट देने वाला कौन ? अरिहंत ही है न! कई सन्त ध्यान की मस्ती में डूबे हुए रहते है ? प्रभु मिले तभी तो यह ध्यान की मस्ती है न! दूसरे जन्मान्तर में जाएंगे तो इनमें से एक वस्तु भी साथ आने वाली है क्या? साथ आने वाला तो केवल भगवान का स्मरण ही है न ! इस प्रकार महान् में महान् उपकारी केन्द्र स्थान में रहे हुए अरिहंत परमात्मा हैं। इसलिए वास्तविक रूप से कृतज्ञ मनुष्य दिन-रात अरिहंत को भूलता नहीं है। जहाँ-जहाँ चाहे उस सबको बताने वाले अरिहंत हैं, उनको कैसे भूल सकते हैं! जब जीवन में अरिहंत का अग्रगण्य स्थान आता है, फिर उसके घर में देहरासर नहीं होते हुए भी घर में देहरासर आ जाता है ।
उत्सर्पिणी काल के छ: आरे और अवसर्पिणी काल के छ: आरे हैं.... इस प्रकार बारह आरों का कालचक्र निरन्तर चलता रहता है । उत्सर्पिणी काल का पहला, दूसरा और तीसरा आरा अवसर्पिणी काल का चौथा, पांचवाँ, और छट्टा आरा समान होता है। पहले आरे में सुख ही सुख होता है। पृथ्वी की मिट्टी में शक्कर से भी बढ़कर मीठापन होता है।