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दीर्घदृष्टि
गुरुवाणी-३ कितने ही मनुष्य सुकृत कार्यों के द्वारा दूसरे के परोपकार करते हुए दान, दया आदि सत्कृत्यों से अपने पुण्य को बढ़ाते रहते हैं। इन चार प्रकार के मनुष्यों में तुम्हारा नम्बर कौनसा आता है? विचार करें....! सबसे श्रेष्ठ पुण्य में बढ़ोत्तरी करने वाला मनुष्य है....! विशेषज्ञ
धर्मार्थी मनुष्य का १६वाँ गुण विशेषज्ञ होता है।
उत्तम धर्म की प्राप्ति कब होती है? जो मनुष्य विशेषज्ञ होता है अर्थात् अन्तर को समझता है वही सच्चे धर्म को परखने वाला होता है। गोल और खोल के भेद को जानने वाला होता है अर्थात् वस्तु और उसकी कमी के भेद को जानने वाला होता है। वही पूर्ण वस्तु को प्राप्त कर सकता है। जैसे - गुण कौनसे है और दोष कौनसे है उनको जानने वाला व्यक्ति ही गुणों की आराधना कर सकता है। समृद्धि मिलने के बाद वह यदि विशेषज्ञ होगा तो उस सम्पत्ति का सदुपयोग करेगा, अन्यथा भोग विलास और मौज-मस्ती में मिली हुई सम्पत्ति को उड़ा देगा। आज धर्म के अनेक मतमतान्तर हैं, अनेक गच्छ हैं और अनेक सम्प्रदाय हैं, उन सब में से विशेषज्ञ मनुष्य ही श्रेष्ठ को ग्रहण कर सकता है, अन्यथा वह कुपथ पर चला जाएगा।
आज जगत् का अधिकांश वर्ग जहाँ चमत्कार होता है वहाँ नमस्कार करने वाला बन गया है। इस गुण के अभाव में ही वह इतना अधिक अंधश्रद्धालु बन गया है कि उसको यदि पत्थर में भी चमत्कार दिखता है तो पत्थर के समक्ष ही अपनी भोगों की याचना करने बैठ जाता है। कोई उसको बताने वाला चाहिए कि भाई इनके पास से याचना कर तुझे सब कुछ मिलेगा। अन्धश्रद्धालु मूर्ख की कथा
एक मनुष्य था। उसकी स्त्री खो गई। वह राम के मन्दिर में जाकर भगवान के सामने खूब रोने लगा। उसको रोते हुए देखकर पूजारी को दया