SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ ____ दीर्घदृष्टि गुरुवाणी-३ छुट जाता है। संसार की उपाधियों से मुक्त होने पर ही तुम्हें धर्म करने का विचार और समय मिल सकता है। सेठ ने विचार किया कि घर का इतना मोटा कार्यभार किसको सौंपु। पुत्र वधुओं की परीक्षा करने के लिए उसके एक महोत्सव किया। समस्त स्वजन-सम्बन्धियों को बुलाया। सभी लोगों के बीच में क्रमशः एक-एक बहू को बुलाता है और चारों बहूओं को छिलके वाले धान के पाँच-पाँच दाने संभालने के लिए देता है और कहता है मैं जब इन्हें माँगू तब मुझे यह देना। बड़ी बहू को ऐसा लगता है कि यह बुढ्ढे की मति मारी गई है। इन पाँच दानों का मैं क्या करूँगी। ससुर जी माँगेगे तब घर में से दूसरे पाँच दाने लाकर उन्हें दे दूंगी। इनको कहाँ संभालती रहूँ? ऐसा सोचकर उसने धान के पाँच दाने फेंक दिए। दूसरे नम्बर की बहू उन दानों को खा गई। तीसरे नम्बर की बहू ने सोचा कि ससुरजी ने सबके सामने यह दाने दिए है तो इसमें कोई न कोई रहस्य होगा अतः उन दानों को संभालकर आलमारी में रख दिये। अब चौथे नम्बर की बहू अत्यन्त चतुर और विचक्षण थी। उसने विचार किया कि मेरे ससुरजी बहुत ही बुद्धिमान है, उन्होंने किसी कारण से ये दाने मुझे 'दिए हैं, अतः उसने उन दानों को स्वयं के पीहर भिजवा दिये और भाईयों को कहलवाया कि इन पाँच दानों को अपने खेत में बो देना। इसमें से पकने पर जो दाने निकले वे सारे के सारे दूसरे वर्ष बो देना । उसमें से जो मिले उसको तीसरे वर्ष बो देना। इस प्रकार इन दानों को क्रमशः बोते जाना है। छोटी बहू का चातुर्य समय बीता । पाँच वर्ष का काल पूरा हुआ। ससुरजी ने फिर बड़ा समारोह किया। सभी बहूओं को पहले वाले पाँच दानों को लाने के लिए आदेश दिया। बड़ी बहू ने तो कोठी में से पाँच दाने लाकर उनको दे दिए। श्वसुरजी ने कहा - ये दाने वह नहीं है जो मैंने तुम्हें दिए थे। वे दाने कहाँ गये? बड़ी बहू सच बोली और उसने कहा - पिताजी, वे दाने तो मैंने फेंक
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy