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गुरुवाणी - ३
दीर्घदृष्टि
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एक समय का राजकुमार आज भटकता हुआ भिखारी बन गया । कर्म राजा कब और किसको किस दशा में ले जाएगा यह कह नहीं सकते? ऐसे विकट समय में धर्म ही साथ देता है, रक्षण करता है । यह कुमार घोड़ा लेकर सदा जंगल में जाता है और लकड़ियाँ काटकर उससे अपना गुजारा चलाता है । मन्त्री (संन्यासी) खूब चतुर एवं चालाक था । उसने कुमार के पास पहुँचकर कहा आज सांझ को तुम घोड़ा, रस्सा और कुहाड़ा ये तीनों बेच देना । कुमार कहता है कि मेरी आजीविका का साधन यही है। यदि इसको बेच दूंगा तो मैं क्या करूँगा? संन्यासी कहता है - तू चिन्ता मत कर । मैं जैसा कहता हूँ वैसा कर । कुमार ने लकड़ी के भार के साथ घोड़ा, रस्सा और कुहाड़ा बेच दिया। अच्छा धन मिला। उस धन से अच्छा खाने-पीने और पहनने की वस्तुएं खरीदी। रात पूरी हुई, सुबह हुई तो देखता है कि आंगन में घोड़ा, रस्सा और कुहाड़ा ये तीनों ही मौजूद हैं। आश्चर्य के साथ इस तीनों वस्तुओं को लेकर वह जंगल में जाता है। सायंकाल इन तीनों वस्तुओं को बेच देता है । प्रात:काल ये तीनों चीजे पुन: उसके आंगन में विद्यमान रहती है । क्योंकि उसके भाग्य में ये तीन वस्तुएं ही लिखी हुई थी । अतः विधाता देवी को ये तीनों वस्तुएं हाजिर करनी ही पड़ती हैं। विधाता देवी / भाग्य प्रतिदिन घोड़ा कहाँ से लाए ! वह परेशान हो जाती है। पूर्व के मन्त्री ( संन्यासी) के पास जाकर कहती है - तुमने मुझे संकट में डाल दिया। प्रतिदिन मैं घोड़ा कहाँ से लाऊँ ? मन्त्री कहता है - हे भाग्य विधाता ! या तो आप इसका राज्य सौंप दें नहीं तो रोज-रोज घोड़ा आपको लाना ही पड़ेगा। विधाता उसको वापिस राज्य दिला देती है।
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निष्कर्ष ये है कि यह तो एक वार्ता / घटना है, किन्तु जो भाग्य में लिखा होता है उसको मिथ्या करने में कोई भी समर्थ नहीं है। कितने ही लोग धूल में से धन पैदा करते हैं। मकान के ठेकेदार क्या करते हैं, रेत में से ही धन पैदा करते हैं न? कितने ही लोग भाग्यहीन होते हैं, तो धन को भी धूल कर देते हैं । वंश परम्परा से चाहे जितना भी धन