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दीर्घदृष्टि
गुरुवाणी-३ सांत्वना देते, ऐसे प्रजा वत्सल थे। आज की जनता तो राजा को निर्वाचित करके कुर्सी पर बिठाती है, तब भी वह आज का राजा, जनता को खड्डे मे डाल देता है.। इस राजा का मन्त्री बहुत चतुर और परोपकारी था। उसने विधाता देवी की साधना की। साधना बल के सन्मुख क्या अशक्य होता है? देवी प्रत्यक्ष हुई, वरदान माँगने के लिए कहा। तब मन्त्री ने रानी को पुत्र हो, ऐसा मांगा। लेकिन देवी ने कहा- इसके अलावा कुछ और मांगो। मंत्री ने जिद पकड़ी तो देवी ने कहा- कि पुत्र तो होगा, किन्तु वह सुखी नहीं होगा। इतना कहकर देवी अदृश्य हो गई। समय व्यतीत होता गया। रानी ने पुत्र को जन्म दिया। राजा के हर्ष का कोई पार नहीं था। पुत्र का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मना रहा था। छठ्ठी के दिवस विधाता भाग्यलेख लिखने के लिए आता है। मन्त्री, कुमार के पालने के पास जागृत बैठा हुआ है। मन्त्री ने देवी की आराधना की थी, इसीलिए देवी जो भाग्य लेख लिख रही थी उसको देख रहा था। लेख लिखने के बाद देवी ज्यों ही मुड़ती है, त्यों ही मन्त्री उसका पल्ला पकड़ लेता है, और पूछता है कि लेख में आपने क्या लिखा है, मुझे बतलाइए। देवी कहती है कि यह लड़का जब २० वर्ष का होगा तब राजा और रानी दोनों ही मृत्यु की गोद में चले जाएंगे। राज्य पर शत्रु राजाओं का अधिकार हो जाएगा और इस लड़के के पास केवल एक घोड़ा, रस्सा तथा कुहाड़ा ये तीन ही चीज रहेगी। देवी चली गई। इस गुप्त रहस्य को मन्त्री ने अपने हृदय में ही रखा। कालचक्र बीतते हुए क्या समय लगता है! समय तो पानी के प्रवाह के समान बह रहा है। सुख के दिवस जल्दी से बीत जाते हैं। देखते-देखते २० वर्ष बीत गए । राजा और रानी दोनों मृत्यु को प्राप्त हुए। उस राज्य पर दुश्मन अपना अधिकार कर लेते हैं। मन्त्री भी राज्य छोड़कर संन्यास धर्म स्वीकार करता है। कर्म राजा का झटका
इस तरफ कुमार के हाथ में केवल एक घोड़ा, रस्सा और कुहाड़ा ही रहता है। इन तीनों वस्तओं को लेकर कमार वहाँ से भाग छुटता है।