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अन्धेरे में भटकता जगत
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गुरुवाणी - ३ राष्ट्रपति अथवा संसद सदस्य के साथ सम्बन्ध रखता है तो वह कितना घमण्ड रखता है। जबकि ये तो राजाधिराज देवराज हैं। उनका सामीप्य कितना गर्व लाता है। अथवा जीवन में कितनी मस्ती लाता है ? किसकी रुचि ?
पदार्थों और परमात्मा में रुचिकर कौन है, इसका निर्णय तुम्हें करना है । सद्गुरु तो तिराहे पर खड़े हुए तुमको रास्ता बता रहे हैं - हे भाई! यह मार्ग सीधा जाता है, शान्तिदायक है । और यह मार्ग राजमार्ग के समान निरन्तर चलता रहता है, जिसमें दुर्घटनाओं का भय बना रहता है । अनेक विघ्नों से परिपूर्ण है। तुझे जिस मार्ग जाना हो जा सकता है। कौन मूर्ख मनुष्य है, जो जानते हुये भी पदार्थ रूपी विघ्नों से भरे हुए (जहाँ दुर्घटना का भय है) मार्ग पर जाएगा ? तुम जाओगे क्या ?
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भगवान श्री कृष्ण गीता में महत्व की बात कहते हैं 'बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान् मां प्रपद्यते।" अर्थात् जन्म के अन्तिम समय में ज्ञानी पुरुष मुझे प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु हमारा लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करने का होगा तभी तो सम्भव है। इस तरफ हम यदि कदम बढ़ाएंगे तभी न? किन्तु यदि हम परमात्मा के विरुद्ध दिशा में गमन करेंगे तो करोड़ो भव तक हम उसे प्राप्त नहीं कर सकेंगे। हमें जाना हो मुम्बई और रास्ता चुने दिल्ली का..... कभी मुम्बई पहुँच सकते हैं क्या ! केवल कष्ट ही प्राप्त करेंगे न ! उसी प्रकार परमात्मा की ओर अग्रसर होंगे तो ही जल्दी या देर से वे हमें अवश्य मिलेंगे । उनके विरुद्ध पदार्थों की दिशा में ही दौड़ेंगे तो कदापि परमात्मा नहीं प्राप्त कर सकेंगे। किन्तु दुःखों की विपरीत परम्परा खड़ी करेंगे।
परमात्मा के पास जाने की इच्छा होगी तो मन को तैयार करना ही पड़ेगा। दीर्घदृष्टि से विचार करोगे तो ही तुम्हे लगेगा कि यही सच्चा मार्ग है।
माला बनाई काष्ठ की, बीच में डाला सूत माला बेचारी क्या करे कि, जपने वाला कपूत