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गुरुवाणी-३
अन्धेरे में भटकता जगत रामरक्षक है तो कौन क्या बिगाड़ेगा? ( राम राखे तेने कौन चाखे)
एक सन्त पुरुष ध्यान में बैठे हुए थे। पास में ही शिष्य खड़ा था। भयंकर घोर जंगल था वहाँ बाघ और शेरों की भयावनी आवाज सुनाई देती थी। शिष्य एकदम घबरा जाता है। गुरु महाराज को भागने के लिए संकेत करता है किन्तु उसके गुरु तो ध्यानमग्न थे, भगवान के संरक्षण में थे। उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं था। अपने को बचाने के लिए शिष्य वृक्ष पर चढ़ गया। वहाँ भयोत्पादक शब्द करता हुआ बाघ आता है। वृक्ष पर बैठा हुआ शिष्य थरथर कांपता है। वह सोचता है कि यह बाघ अभी गुरु महाराज को फाड़कर खा जाएगा। उसको यह खबर नहीं थी कि जो भगवान के संरक्षण में होता है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। कहावत है - राम राखे तेने कोन चाखे। बाघ निकट मे आया। गुरु की सौम्य मूर्ति देखकर एक दम शान्त हो गया और उनको प्रदक्षिणा देकर, कुछ समय उनकी छाया में रहकर वापिस चला गया। शिष्य तो यह दृश्य देखता ही रहा। गुरु भगवान के ध्यान में लीन थे। जब हम परमात्मा के साथ एकरूप बन जाते हैं तो हम भी परमात्म स्वरूप बन जाते हैं। जीवन में शान्ति का अकथनीय आनन्द प्रकट होता है। हम बाहर के पदार्थों के साथ तन्मय बन गये हैं इसी कारण हमारा चित्त परमात्मा में नहीं लगता है। कुछ समय के बाद शिष्य वृक्ष पर से उतरा। शिष्य ने गुरु महाराज की बड़ी प्रशंसा की । गुरु-शिष्य अब आगे चलते हैं। आगे जाते हुए सामने एक कुत्ता भौं-भौं करता आता है। गुरु ने हाथ में रही हुई लाठी को उठाया.... शिष्य बोला - गुरुजी ऐसा कैसे? जब बाघ जैसा भयंकर प्राणी सामने आया तो आपने आँख भी नहीं खोली और इस कुत्ते के सामने लाठी उठा ली, इसका क्या कारण है? गुरुजी ने उत्तर दिया - जब बाघ आया था तो मैं भगवान के साथ था और अब तुम्हारे साथ हूँ। संसार जनित प्रत्येक व्यवहार में यदि तुम प्रभु को साथ में और अपने सिर पर रखकर के काम करोगे तो.... उसके बाद उसका देखना चमत्कार। आज कोई मनुष्य