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अन्धेरे में भटकता जगत
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गुरुवाणी - ३ जान जोखिम में पड़ जाती है । आभूषण लॉकर में ही बन्द रहते हैं । ऐसी सम्पत्ति है, तो भी मनुष्य भ्रांति में जीता है । अनेक संकटों को पैदा करने वाली सम्पत्ति का पूर्ण उपभोग भी नहीं कर सकते । कभी-कभी जीवन की समाप्ति तक यह हमें ले जाती है ! अथवा प्रचुर सम्पत्ति हो किन्तु शरीर रोग युक्त हो तो? अच्छा खा-पी भी नहीं सकते । कदाचित् पुण्य के संयोग से सम्पत्ति मिल जाती है, भोग भी करते हैं किन्तु कहाँ तक ? कबीर दासजी कहते हैं - कहत कबीरा सुण मेरे गुणीया, आप मुये पीछे डूब गई दुनिया । बल्कि आसक्ति के कारण स्वयं के आगामी जन्मों को भी वह बिगाड़ देती है । वैसे तो कहा जाता है कि सम्पत्ति पुण्य के योग से ही मिलती है, किन्तु कभी-कभी सम्पत्ति के कारण ही खून होता है तब तो यह मान लेना होगा कि पाप के उदय के कारण मिली है सम्पत्ति आने के बाद मनुष्य विलास क्रिया में डूब जाता है और नए-नए पापों को बांधता जाता है। जो मनुष्य दीर्घदृष्टि से विचार करता है, तो उसको समझ में आ जाता है कि यह धन मुझे कहीं का कहीं फेंक देने वाला है। आगामी जन्म में तो धर्म ही मेरे काम आएगा ।
साथ क्या आएगा ?
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मनुष्य के मर जाने पर उसे श्मशान में ले जाया जाता है । चिता जलाई जाती है.... लोग वापिस लौटते हैं, पीछे की ओर नजर करके देखते भी नहीं है । कहीं वह पीछे आ गया तो ! यह मन में बराबर भय रहता है। साथ में आने वाला कौन ? सगे-सम्बन्धी, प्रियजन, मोटर, बंगला या वैभव आदि कोई भी साथ आया है क्या ? कोई भी साथ आने वाला नहीं है। जानते हुये भी इन सब को प्राप्त करने के लिए अंतिम सांस तक प्रयत्नशील रहता है जैसे यही सब कुछ साथ ले जाने वाला हो। संसार की इस माया में आकण्ठ डूबा हुआ रहता है। मनुष्य यदि दीर्घदृष्टि से विचार करे तो उसे सब कुछ अनर्थकारी लगेगा और वह धर्म के मार्ग की ओर चल सकेगा। उसी से पुण्योपार्जन होगा तथा सम्पत्ति, शान्ति अपने आप उसके