________________
अन्धेरे में भटकता जगत्
आसोज सुदि ४
सुदीर्घदर्शी
जगत के तमाम प्राणी अज्ञान के अन्धेरे में इधर-उधर भटक रहे हैं। यहाँ तक तो ठीक, लेकिन जीव अन्धेरे को ही प्रकाश मान बैठे हैं, यह दुःख की बात है। उसका परिणाम यह आया है कि आँखें होने पर भी और सामने निधान होने पर भी मनुष्य उसको देख नहीं पाता। जो मनुष्य यह समझ सकता है कि मैं अन्धेरे में भटक रहा हूँ तो सद्गुरु उसको मार्ग बताने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु हम तो आँखें बन्द करके ही बैठे हैं। सत्य को सुनने की लिए तैयार ही नहीं है, यह कठिनाई है। महापुरुष घण्टा बजाकर हमें कह रहे हैं - ब्रह्म सत्यं जगन् मिथ्या। किन्तु हम तो मिथ्या जगत् को ही सत्य जगत् मानकर उसके पीछे दौड़ रहे हैं।
___ धर्मार्थी मनुष्य का पन्द्रहवाँ गुण - सुदीर्घदर्शी इस लोक का धन कहाँ तक?
धर्मार्थियों के लिए भी दीर्घदर्शिता गुण अत्यन्त महत्त्व का है। मनुष्य दीर्घ दृष्टि से विचार करें तो वह अनेक अनर्थों से बच सकता है। हमारी विचारधारा तो बहुत ही छोटी होती है इसीलिए हमको चारों ओर धन और वैभव ही दिखाई देता है। जो मनुष्य दीर्घदृष्टि से विचार करता है कि धन कहाँ तक? तुम जीवित हो वहाँ तक शायद यह तुम्हारे काम में आ जाए किन्तु परलोक में यह धन काम नहीं लगने वाला है। भारत का रूपया अमेरिका तक भी नहीं चलता है तो इस लोक का धन परलोक तक कहाँ चलेगा? और इस धन का इस जीवन में भी अच्छी तरह से उपभोग नहीं कर पाते हैं। मुम्बई जैसे शहर में असली जवाहरात के आभूषण पहनकर के निकल सकते हैं क्या? यदि पहनकर निकलते हैं तो