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- सुपक्ष से युक्त
गुरुवाणी-३ "प्रभु नाम नी औषधि, खरा भावथी खाय, रोग शोक आवे नहीं, सवि संकट मिट जाए।"
एक बार दोनों पति-पत्नी जंगल से गाँव की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक चाँदी का कड़ा (पैर में पहनने का आभूषण) पड़ा हुआ था। वैसे तो इस समय उन दोनों के पास धन की बहुत कमी थी किन्तु उनकी प्रतिज्ञा थी कि दूसरे के अधिकार का धन नहीं लेना। पति ने विचार किया कि मुझे तो यह चाँदी का कड़ा नहीं लेना है किन्तु मेरे पीछे आ रही पत्नी की मनोवृत्ति बदल न जाए, इसीलिए उसने उस कड़े के ऊपर पर धूल डाल दी। पत्नी ने देखा और वह बोल उठी - "धूल पर धूल क्यों डालते हो।" अपने दोनों के मन में यह परधन पत्थर समान है। तुलसीदासजी ने कहा है -
"परधन पत्थर सम गणे, पर स्त्री मात समान, इसको वैकुंठ न मले तो, तुलसी दास जमान।"
अर्थात् जो मनुष्य परधन को पत्थर के समान गिनता है और परस्त्री को माता के समान मानता है उसको यदि स्वर्ग नहीं मिले ऐसी स्थिति में तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं जमानत देता हूँ, उसको वैकुंठ अवश्य मिलेगा। पति-पत्नी दोनों ही अपने नियम में अडिग रहे । सज्जन व्यक्तियों से भी बढ़कर ऐसा सुन्दर जीवन जी गये । एक खूखार डाकू को भी सज्जन किसने बनाया? सन्त के समागम ने ही न!
आस-पास का परिवार श्रेष्ठ विचारों का हो तो ही मनुष्य शान्ति से रह सकता है और धर्म की आराधना कर सकता है। पक्ष अर्थात् पंख। पक्षी चाहे जितना भी विशाल हो किन्तु यदि उसके पंख कट जाएं तो वह नीचे ही गिरेगा न! इसी प्रकार प्रत्येक पक्ष से युक्त मनुष्य ही आगे बढ़ सकता है। राजा भी यदि सुपक्ष से युक्त हो तो ही राज्य व्यवस्था अच्छी चलती है। जो उसके साथ उठने-बैठने वाले लम्पट और लालची हों तो