SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-३ सत्कथा ४. राजकथा चौथी कथा राजकथा है:- एक युग ऐसा था कि ऋषियों का राज्य चलता था। राज्य भले ही राजा करे किन्तु ऋषि-मुनियों के कथनानुसार ही संचालन होता था। राजागण उनको सम्मान देते थे। विश्वामित्र हों या दुर्वासा हो अथवा वशिष्ठ हों, ऋषियों के बल पर ही राज्य का संचालन होता था। समय बदला, क्षत्रियों का राज्य आया, क्षत्रियों ने जो चाहा सो किया। कुछ समय तक ठीक चलता रहा। फिर वेश्यों का राज्य आया। राज्य की व्यवस्था चाहे क्षत्रिय राजा ही करें, किन्तु उनके मन्त्री वणिक आदि जाति के ही रहते थे। मन्त्री लोग ही राज्य को चलाते थे। महाजन जो करता था वही होता था। ऐसा भी कुछ समय तक चला। इस प्रकार राज्य ऋषियों-ब्राह्मणों ने किया, क्षत्रियों ने किया, वेश्यों ने किया और अब शेष रहे शूद्र। आज राज्य व्यवस्था शूद्रों के हाथ लग गई है और उनकी शूद्र वृत्ति के कारण देश बरबादी की ओर अग्रसर है। अजब अलौकिक शक्ति! इन मुख्य चार कथाओं के अतिरिक्त भी दो कथाएं और हैं - अहंकारकथा और द्वेषकथा। लगभग सामान्य मनुष्यों के बीच में आप खड़े रहेंगे तो स्वयं की बढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुनने को नहीं मिलेगा।I am something. किन्तु वह यह नहीं जानता कि जगत में एक दूसरी भी अलौकिक शक्ति है। आज का मनुष्य इस शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। बस, उसे तो अपनी ही शक्ति का प्रबल अहंकार होता है। चाहे नदियों की बाढ़ आए और चाहे भूकम्प हो उस समय मनुष्य की कौनसी शक्ति काम कर सकती है? परमात्मा के अतिरिक्त उस समय कोई भी बचा नहीं सकता। किसी भी कार्य के प्रारम्भ में जो प्रभु को याद करते हैं, तो उन पर प्रभु की कृपा अवश्य होती है। भले ही बढ़िया खाद्य पदार्थ खाने के लिए लेकर आए हों किन्तु पहले
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy