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________________ सत्कथा गुरुवाणी-३ हों, वहाँ किसी न किसी की आप-बीति चलती रहती है। निन्दा के अतिरिक्त कुछ नहीं होता है। चार विकथाएं - १. स्त्री कथा सारा विश्व चार कथाओं में डूबा हुआ नजर आता है:स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा और राजकथा। सत्कथाओं का मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। स्त्रीकथा अर्थात् स्त्री सम्बन्धी चर्चा । कामी पुरुष के पास बैठने पर हमें क्या सुनने को मिलेगा? स्त्रीकथा ही न! टी.वी., वीडियो और नाटक-सिनेमा में स्त्री कथा ही होती है न! और इस युग में तो आगे बढ़कर सौन्दर्य की स्पर्धा निकली है । स्त्री के सौन्दर्य की स्पर्धा ! स्त्री के सौन्दर्य को देखने का अधिकार पति के अतिरिक्त किसी को नहीं होता है, किन्तु आज भरे बाजार में ऐसी स्पर्धाएं आयोजित होती रहती है। हमारे शरीर में माँस है, यह क्या पक्षियों को बताना ठीक है? पक्षी न देखें इसीलिए उसके ऊपर चमड़ी रखी गई है। अन्यथा क्या गीद्ध तुम्हे जीवित रहने देंगे! सौन्दर्य तो आवरण में रखने की ही चीज है। कामी पुरुष रूपी गीद्ध चारों तरफ उड़ रहे हैं । क्या दशा होगी? अरे, ट्रकों में भोजन की वस्तुएं भी आच्छादित करके रखने में आती है। विदेश में तो किसी भी प्रकार की भोजन सामग्री खुली रखकर बेचना भी अपराध माना जाता है। एक भाई ने अमेरिका में सिद्धचक्र पूजन का आयोजन रखा। पूजन में तो फल-फलादि खुले ही रखने में आते हैं । इन फल-फलादि को किसी ने हाथ भी नहीं लगाया। इस भाई ने सोचा कि अब यह फल-फलादि किसे दूँ। जलसरण करने गया तो वहाँ भी उसे ना कह दिया। क्योंकि यह हमारी जनता का नुकसान करता है, अतः पानी में भी नहीं फेंकने दिया। खुले खुराक की इतनी अधिक घृणा है। खाद्य पदार्थों को भी जब ढक्कर रखा जाता है, तो सौन्दर्य जैसी इस महामूल्य वस्तु को
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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