SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्कथा आसोज सुदि २ दयापात्र कौन है? हमारा कल्याण कैसे हो इसके लिए भगवान हमारी निरन्तर चिन्ता करते रहते हैं । जगत में अनेक धर्म प्रचलित हैं, किन्तु सच्चा धर्म कौनसा है इसकी अनेकों को जानकारी नहीं है। तप-जप करते हुए भी व्यर्थ ही उनको कायक्लेश लगता है और सद्धर्म उनके हाथ लगता नहीं। भगवान की वाणी को जो सुनते नहीं हैं, वास्तव में उनकी दशा शोचनीय है। वे दया के पात्र हैं, लेकिन जो सुनकर एवं समझकर के भी आचरण नहीं करते, वे तो दयापात्रों में भी दया के पात्र हैं। तेली की घाणी में बंधा हुआ बैल सारे दिन में एक या दो किलोमीटर चलता है, किन्तु देखते हैं, तो उसी स्थान पर नजर आता है। उसी प्रकार हम मन में मानते हैं कि मैंने यह किया, मैंने वह किया, परन्तु अन्त में देखें तो वहीं के वहीं नजर आते हैं। हमारे स्वाभाव में न तो कोई परिवर्तन होता है और ना ही किसी प्रकार वाणी और आचार में परिवर्तन! धर्म करने के लिए गुणों की आवश्यकता है। पूर्व में हम गुणानुराग पर विचार कर चुके हैं। अनन्त जन्मों से हमको अपनी जाति पर गर्व है इसीलिए हमको अपने ही गुण दिखाई देते हैं और दूसरों के अवगुण ही दृष्टि में आते हैं। अवगुणों को दूर करने के लिए सत्संग अत्यावश्यक है। शास्त्रकार महाराज धर्म के योग्य व्यक्ति का तेरहवाँ गुण सत्कथा - सत्संग बता रहे हैं। सत्कथा अर्थात् जहाँ बैठा हो वहाँ उसके पास से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बात जानने को और सुनने को मिले। बहुत से मानव ऐसे होते हैं कि जहाँ बैठे
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy