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________________ क्षमापना गुरुवाणी-२ आता है। कल्याणमल्ल, महाराज को वन्दन करने के लिए आते हैं उस समय उनके सिर पर पगड़ी नहीं थी। गुरु महाराज ने स्वाभाविक रूप से पूछा - सेठ पगड़ी नहीं बांधते हो क्या? कल्याणमल्ल ने जवाब दिया - नहीं, साहेब! मैंने तो सहस्रमल्ल को, जो राजा का मन्त्री है उसको मारने की प्रतिज्ञा की है। जब तक उसको मैं मार नहीं देता तब तक सिर पर पगड़ी धारण नहीं करूँगा। इस प्रतिज्ञा को लिए हुए मुझे पच्चीस वर्ष हो गए। इस कार्य हेतु मुझे कोई मौका नहीं मिला। यह सुनकर गुरु महाराज को धक्का सा लगा। अरे ! ऐसा मुख्य आगेवान श्रावक और ऐसा क्रोधी। उसको अनेक प्रकार से समझाया किन्तु वह अपनी प्रतिज्ञा से किञ्चित् भी पीछे नहीं हटा। इधर एक दिन अधिक रात होने पर भी सहस्रमल्ल किसी कारण से गुरु महाराज से मिलने के लिए आता है। उस समय गुरु महाराज किसी साधु के साथ स्वाध्याय कर रहे थे। सहस्रमल्ल को देखकर गुरु महाराज ने कहा - इतनी रात में आप अकेले आते हो यह अच्छा नहीं है। तुम्हें सावधान रहना चाहिए। मन्त्री कहता है - मेरा कोई दुश्मन ही नहीं है फिर मैं सावधानी क्यों रखू? गुरु महाराज कहते हैं - नहीं, भाई! ऐसा नहीं है। कल्याणमल्ल ने तुम्हें मारने की प्रतिज्ञा कर रखी है, उससे सावधान रहना। उस रात को ऐसा संयोग बना कि कल्याणमल्ल भी किसी कारण से उपाश्रय के किनारे सो रहा था। उसने यह वार्तालाप सना तो गुस्से से आग बबूला हो गया। उसने सोचा - जिस बात को मैंने वर्षों तक गुप्त रखी उसी बात को गुरु महाराज ने प्रकट कर दी। क्या इनको साधु कह सकते हैं? उसके बाद तो उसने व्याख्यान में आना भी बन्द कर दिया। अरे! उपाश्रय में आना-जाना भी बन्द, गुरु महाराज को वन्दन करने के लिए भी नहीं आता। गुरु महाराज ने पता लगाया और कई बार कहलवाया कि उपाश्रय में अवश्य आवें किन्तु कल्याणमल्ल नहीं आया। ऐसे करते हुए पर्युषण पर्व आ गया। गुरु महाराज ने सोचा कि आज तो महापर्व का दिवस है इसीलिए कल्याणमल्ल अवश्य आयेंगे किन्तु वे तो
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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