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गुरुवाणी-२
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क्षमापना अत: बालक समझकर उसके राज्य को कोई हड़प न जाए, इसीलिए आप हमारे राज्य के चारों ओर सुदृढ़ दुर्ग बनवा दें। यहाँ दुर्ग बनवाने के लिए पक्की ईंटें बनती नहीं हैं, उज्जैन नगरी में ही बनती हैं। वहाँ से ईंटे मंगवाकर मजबूत दुर्ग बनवा दें, फिर मैं आपके पास आ सकती हूँ। राजा चण्डप्रद्योत ने मृगावती का जब यह बनावटी पत्र बांचा तो मन ही मन बहुत खुश हुआ। उज्जैन यहाँ से बहुत दूर है, वहाँ से ईंटें कैसे आ सकती हैं? चण्डप्रद्योत में धैर्य का अभाव भी था, अतः अपनी सारी सेना की कौशाम्बी से उज्जैन तक ऐसी रचना कर दी की हाथों हाथ उज्जैन से ईंटे आने लगी। कुछ ही समय में कंकर भी न खिरे इस प्रकार का सुदृढ़ दुर्ग बन गया। किला तैयार होने पर चण्डप्रद्योत ने कहलवाया कि अब तुम जल्दी से आ जाओ। मृगावती ने तत्काल ही कहलवाया कि दुर्ग तो तैयार हो गया है किन्तु यदि कोई राजा अचानक ही चढ़ाई कर दे और किले को घेर ले ऐसी दशा में प्रजा के भरण-पोषण के लिए अनाजादि तो चाहिए न? इसीलिए आप हमारे कोठारों को अच्छी तरह से भर दें, फिर मैं आऊँगी। राजा तो स्त्रीलम्पट था, इसी कारण आसक्ति में वह अपना भान भी भूल गया। तुरन्त ही कौशाम्बी नगर के समस्त भण्डारों को पूर्ण रूप से भर दिया। चण्डप्रद्योत ने पुनः कहलवाया - अब तो शीघ्र आ जाओ, देर मत करो । मृगावती ने उत्तर दिया - युद्ध के समय शस्त्रास्त्र न हो तो प्रजा का रक्षण कैसे होगा? अतः अच्छे से अच्छे नवीन शस्त्रास्त्रों को भिजवा दें, उसके बाद मैं आ सकती हूँ। स्त्री के मोह में फंसे हुए राजा ने अपने पास रहे हुए बढ़िया से बढ़िया ऊँची जाति के शस्त्रास्त्र मृगावती के पास भिजवा दिए और कहलवाया कि अब तुम जल्दी आ जाओ। इधर इस चालाक रानी ने किले के सारे दरवाजे बन्द करवा दिए और चण्डप्रद्योत के शस्त्रों के साथ ही किले पर अपनी सम्पूर्ण सेना को नियुक्त कर दिया। अपने ही शस्त्र और अपनी ही सेना सामने देखकर चण्डप्रद्योत पागल सा हो गया और अपने ही निर्लज्ज कर्त्तव्यों पर रो पड़ा। अरे, एक स्त्री