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________________ ७६ क्षमापना गुरुवाणी-२ मृगावती का हूबहू चित्र तैयार हो गया। राजा निरीक्षण के लिए चित्रशाला में आता है। निरीक्षण के समय वहाँ मृगावती का चित्र देखता है और उसकी जांघ पर तिल का निशान भी देखता है, उसे देखते ही उसके मन में शंका के कीड़े कुलबुलाने लगे। इस तिल के निशान को मेरे अतिरिक्त कोई नहीं जानता है। निश्चित ही यह चित्रकार चरित्रहीन लगता है और मेरी रानी मृगावती भी सती नहीं लगती। राजा चितेरे पर क्रोधित हुआ और तत्काल ही चित्रकार का अंगूठा कटवा दिया। चित्रकार स्वयं देव के पास गया और देव के पास जाकर निवेदन किया। देव ने उसे आश्वस्त किया कि तु बांये हाथ से चित्र बना सकता है। चित्रकार ने अपमान का बदला लेने का निश्चय किया। उसने मृगावती का दूसरा चित्र तैयार किया और उस चित्र को लेकर स्त्रीलम्पट चण्डप्रद्योत के पास जाता है। चण्डप्रद्योत उस चित्र को देखकर आसक्त बन जाता है। कौशाम्बी के राजा शतानीक के पास दूत भेजकर मृगावती की याचना करता है। ऐसी अश्लील मांग से कौशाम्बी नरेश प्रबल आवेश में आ जाते हैं और मांग को अस्वीकार कर देते हैं। इससे चण्डप्रद्योत अपना अपमान समझकर विशाल सेना के साथ वहाँ आता है और कौशाम्बी नगरो को घेर लेता है समुद्र के समान उसकी सेना को देखकर कौशाम्बी नरेश एकदम घबरा जाते हैं और इसी चिन्ता में वे मौत की गोद में सो जाते हैं। रानी को आघात लगता है। वह परिस्थितियों को भांप गई। वह स्वयं चतुर, निपुण और राजनीतिज्ञ थी। वह स्वयं अपने शील की रक्षा और पाँच वर्ष के पुत्र की स्वयं पर जिम्मेदारी है यह अनुभव करती थी। उसके समक्ष एक ओर शील का रक्षण था तो दूसरी ओर राज्य का रक्षण। उसने बुद्धिमत्तापूर्ण एक पत्र लिखवाकर भेजा। उस पत्र में लिखा था - हे राजन् ! आप यहाँ आयें तो कोई दिक्कत नहीं है, अच्छा है। साली अपने बहनोई के साथ विवाह करे इसमें कोई नई बात भी नहीं है। मैं तो आपके पास आने को तैयार हूँ किन्तु इस राज्य का क्या होगा? मेरा पुत्र अभी पाँच वर्ष का है,
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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