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गुरुवाणी-२
क्षमापना कर सकता है किन्तु किसी के समक्ष सिर नहीं झुका सकता। सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा कर सकता है किन्तु जिसके साथ वैर के बन्धन बन्ध चुके हैं उसके घर की तीन सीढ़ियां भी चढ़ना कठिन समझता है। तप करना सहज है किन्तु दूसरे से क्षमा याचना करना बहुत ही कठिन कार्य है। मोक्ष की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए यही बाधक बनता है। इस जीवन में क्षमा आ जाए तो हमारे लिए मोक्ष प्राप्त करना भी सुलभ हो जाता है। जीवन में किसी व्यक्ति के साथ अबोला न होना चाहिए।अबोले तो गूंगे प्राणी होते हैं। चन्दनबाला-मृगावती ....
इस खामणा में केवलज्ञान को प्रदान करने की शक्ति है। शास्त्रों में चन्दनबाला और मृगावती का दृष्टान्त प्रसिद्ध है। मृगावती महासती है। भगवान् महावीर के मामा चेडा नामक महाराजा की पुत्री है। चेडा राजा की सात पुत्रियाँ थीं। सभी पुत्रियों का विवाह बड़े-बड़े राजाओं के यहाँ हुआ था। मृगावती का विवाह कौशाम्बी के महाराजा शतानीक के साथ हुआ था। एक पुत्री का विवाह उज्जैन के महाराज चण्डप्रद्योत के साथ हुआ था। शतानीक राजा को ऐसी अभिलाषा उत्पन्न हुई कि मुझे एक विशाल सभागार बनवाना है। जिसमें विविध प्रकार के चित्रों का निवेश हो । संजोग द्वारा दैवीय वरदान से युक्त एक चित्रकार भी मिल गया। उस चित्रकार को देव का ऐसा वरदान था कि किसी के भी शरीर का कोई भी अंग या हिस्सा देख ले तो वह उसका सम्पूर्ण हूबहू चित्र बना देता था। वही चित्रकार चित्रसभा का काम-काज संभालता था। एक बार उसने रानी मृगावती के एक अंगूठे को देख लिया। वरदान के बल पर उसने मृगावती का पूर्ण चित्र तैयार कर दिया। उस चित्र में वह एक भ्रमर को बनाना चाहता था, बनाते-बनाते रंग की एक बूंद चित्र की जंघा पर गिर गई। चित्रकार ने उसे पोंछकर साफ कर दिया। दो-तीन बार साफ करने पर भी बारम्बार रंग की बूंद वहीं पर गिरती थी। इस कारण से उसने विचार किया कि कदाचित् उस स्थान पर तिल होगा। दैवीय वरदान से