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________________ ६५ गुरुवाणी-२ ___ पर्युषणा-तृतीय दिन में मानता मानी थी कि भगवन् ! जो इस विपदा में से छूट जाऊँ तो मैं आपकी सोने की आंगी बनवाऊँगा। जिस गाँव में दोनों मिले उसका नाम था विद्यापुर। वहीं पर निवास करने लगे। स्तंभन पार्श्वनाथ भगवान् की सोने की आंगी बनवाकर भगवान् को भेंट चढ़ाई। प्रतिदिन दान का प्रवाह तो चालू ही था। विद्यापुर से निकलकर देदाशा देवगिरि आए। देवगिरि बहुत समृद्ध नगर था। इसी कारण मुहम्मद तुगलक ने अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद अर्थात् दौलत से समृद्ध रखा था। इस दौलताबाद में तीन सौ साठ सेठ रहते थे। उन सेठों ने यह निर्णय लिया था कि प्रतिदिन साथ ही भोजन करना। एक के बाद एक क्रमशः नाम वर्ष पूर्ण होने के बाद आता था। बाहर से कोई भी श्रावक व्यापार करने के लिए आता था तो गांव के सभी श्रावकों की तरफ से एक-एक रुपया दिया जाता था। लगभग एक लाख जैन श्रावकों की आबादी थी, इस कारण नवागन्तुक श्रावक आने के साथ ही लखपति बन जाता था। ऐसे समृद्ध शहर में देदाशा आ गए। जहाँ श्रावकगणों की आबादी हो वहाँ मन्दिर और उपाश्रय तो होते ही हैं। चाहे शिकागो हो या अफ्रीका, अमेरिका हो या लंदन। देदाशा प्रभु के दर्शन कर मन्दिर के बाजू में उपाश्रय में विराजमान गुरु भगवन् को वंदन करने के लिए जाते हैं। उपाश्रय में समस्त श्रावकों का समूह बैठा हुआ था। उपाश्रय की टीप चल रही थी। रुपयों की खेंचातान चल रही थी। उस समय देदाशा बोले - भाई! व्यर्थ की खेंचातान क्यों कर रहे हो? इसका लाभ तो मुझे अकेले को ही प्रदान करो। उसी समय कोई वाचाल आदमी बीच में ही बोल उठा - क्या तुम सोने का उपाश्रय बनवाने वाले हो? देदाशा ने तत्काल ही उत्तर दिया – हाँ, सोने का उपाश्रय बनाऊँगा। लोग गर्दन उठाकर उनकी ओर देखने लगे। कोई भाई उनको पहचान गया - अरे ! ये तो देदाशा हैं । ये जो बोलते हैं कर दिखाते हैं। इनकी सामर्थ्य तो ऐसी है कि ये चाहे तो सारे गाँव को सोने का बना दें। इसीलिए ये सेठ उपाश्रय को सोने का बनाएंगे
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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