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पर्युषणा-तृतीय दिन
गुरुवाणी-२ की देदा सेठ के रूप में प्रसिद्धि हो गई। कितने ही ईष्यालुओं के मन में शंका जाग्रत हुई कि कल का यह भिखारी आज देदा सेठ कैसे बन गया? निश्चित ही उसे कोई निधान प्राप्त हुआ है। ऐसे लोगों ने राजा के कान भर दिये। राजा ने देदा को बुलाकर पूछा । देदा ने उत्तर दिया - मेरे पास कुछ भी नहीं है, मै कमाता हूँ और खर्च करता हूँ। किसी को ठगता नहीं, किसी को लूटता नहीं। खजाना भी नहीं निकला है। देदा की बात को राजा ने स्वीकार नहीं किया और उसको नजर कैद कर दिया। इस तरफ देदा की पत्नी विमलश्री ने देखा कि भोजन का समय होने पर भी देदाशा भोजन करने क्यों नहीं आए? इसीलिए भोजनार्थ देदाशा को बुलाने के लिए नौकर को भेजा। नौकर ने आकर कहा - भोजन के लिए पधारिए। देदाशा ने समय सूचकता को ध्यान में रखकर कहा - जाओ, तुम लोग नाश्ता कर लेना, मुझे भोजन नहीं करना है। नौकर ने आकर देदाशा की बात सेठानी को कह दी। विमलश्री समझ गई कि कुछ न कुछ दाल में काला है। घर में कोई अधिक वस्तुएं नहीं थी इसीलिए जो कुछ था उसे लेकर भाग छूटी। निमाड़ देश की सीमा पार कर ली और पति के सम्बन्ध में चिन्ता करने लगी। श्री स्तंभन पार्श्वनाथ की महिमा....
उस समय में श्री स्तंभन पार्श्वनाथ की अतिशय महिमा फैली हुई थी। इस तरफ देदाशा, पार्श्वनाथ भगवान् का स्मरण कर और उनका शरण लेकर सो गया। आशा छोड़ के बैठ निराशा, फिर देख मेरे साहेब का तमाशा। सब कुछ त्याग कर जब भगवान् की शरण ग्रहण करते हैं तो वह अवश्य ही सहायता करता है। मध्यरात्रि में एकाएक कोई घुड़सवार वहाँ आया। उसका चारों तरफ प्रकाश फैला। देदाशा को जगाया और घोड़े पर बिठाकर सेठानी के पास छोड़कर वह अदृश्य हो गया। पत्नी ने पूछा - यहाँ कैसे और किस प्रकार आए? तब देदाशा ने कहा - मै स्तंभन पार्श्वनाथ की कृपा से यहाँ आया हूँ और पूरी घटना उसको सुना दी। मन