________________
पर्युषणा - द्वितीय दिन
गुरुवाणी-२ अभिषेक तक बैठी रहीं, उसके बाद उनकी अस्वस्थता के कारण बैठने मे असमर्थ होने से वे नीचे उतरने लगीं। वे तो छालाकुंड तक पहुँची ही होंगी तब तक तो मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ हो गई। मातुश्री एक घण्टे तक छालाकुंड में बैठी रहीं। इधर ऊपर दादा का छठा अभिषेक प्रारम्भ हुआ
और दादा ने हमारा अभिषेक करना प्रारम्भ कर दिया। शशिकान्त भाई ने कहा - दादा कैसे दयालु हैं। हमने तो कुछ ही कलशों से अभिषेक करवाया किन्तु दादा ने तो करोड़ों कलशों से हमारा अभिषेक किया। हमारी दृष्टि के सामने ही गिरिराज पर चढ़ते हुए जिन कुडों में सूखी धूल ही धूल थी, वे सब कुंड जल से भर गये। वर्षा आने से दर्शकगण रंगमंडप में कहाँ खड़े रहे? ऐसी स्थिति आने पर सब लोग दादा के मन्दिर में आ गए। उसके बाद तो वे लोग क्या नाचे हैं? दिल खोलकर नाचे । इस अनूठी भक्ति की प्रतिध्वनि तत्काल ही पड़ी। जो भयंकर दुष्काल आने वाला था वह भाग खड़ा हुआ। चारों तरफ यह चर्चा चली कि कोई साधु आए हैं, उनके जादू/चमत्कार से यह वर्षा हुई है। तब से लेकर आज तक वहाँ दुष्काल नहीं पड़ा है। इस अभिषेक को जिन लोगों ने अपनी दृष्टि से नहीं देखा था उन लोगों ने पुनः अभिषेक कराया किन्तु जो पहला अभिषेक सहजभाव से हुआ था उस आनन्द का अनुभव तो जिसने देखा हो वही जान सकता है। उसका वर्णन शब्दों द्वारा अनिर्वचनीय है। ऐसे अलौकिक हैं ये दादा। चाहे जैसे थकान से लोटपोट होने पर भी दादा के पास पहुँचते ही दादा के मुख-दर्शन से समस्त थकान भाग खड़ी होती है। इस मूर्ति में ऐसी अलौकिक शक्ति कहाँ से आयी? उसके पीछे रही हुई अनेक शुभ भावनाओं में से ही यह शक्ति प्रगट हुई है।
हमारे समस्त तीर्थंकर भगवान् क्षत्रिय वंश में हुए हैं। गौतम स्वामी आदि गुरुजन ब्राह्मण जाति में हुए है और इस धर्म का पालन करने वाले हम लोग (वैश्य) व्यापारी हैं।