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पर्युषणा - द्वितीय दिन
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गुरुवाणी - २ कुण्ड भी एकदम खाली! अरे, ऊपर पूजा करने के लिए नहाने हेतु पानी भी नहीं मिलता था, ऐसी विकट परिस्थिति थी । अचानक प्रद्युम्नसूरिजी के हृदय में विचार स्फुरित हुआ कि दादा का अट्ठारह अभिषेक करवाया
। बहुत वर्ष हो गए, किसी प्रकार की आशातना हुई हो तो वह दूर हो जाएगी। ऐसा उन्होंने मुझे कहा, मगर गिरिराज के ऊपर श्रेणिक भाई की अनुमति के बिना कुछ नहीं हो सकता था अतः श्रेणिक भाई से दूरभाष द्वारा हमने सम्पर्क किया । श्रेणिक भाई ने उत्तर दिया- महाराज साहेब ! अभी नहीं, यह कार्यक्रम चातुर्मास में रखिए। अभी तो यात्रीगणों को भी कठिनाई होगी। हमने कहा- चौमासे में हम ऊपर कैसे चढ़ सकते हैं? अभी ही अट्ठारह अभिषेक करवाने की अनुमति दीजिए। हमारे (साहेबजी के) कहने से श्रेणिक भाई ने आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी पर दूरभाष से कह दिया- महाराज साहब जैसा कहें वैसा करने दें। अनुमति मिल गई। तत्काल ही चन्दुभाई घेटीवाले और रजनीभाई देवड़ी को बुलाया । चन्दुभाई हवाई जहाज से आए। अभिषेक धाम - धूम से करना था। समय कम था । समस्त प्रकार की औषधियाँ मंगवाई गई। प्रमुख - प्रमुख तीर्थों का पानी हवाई जहाज के द्वारा मँगवाया। सभी सामग्री पालिताणा में लाकर केशरियाजी के उपाश्रय में इकठ्ठी की गई। औषधियों को कूटने के लिए ४० बहनों को रखा गया। चारों तरफ औषधियों की सुगन्ध व्याप्त हो गई। अखबारों में छोटी सी जाहिर सूचना भी निकाली गई।
वह मंगलमय आषाढ़ सुदि एकम का शुभ दिन आ पहुँचा। हम सब ऊपर चढ़े। मेरी (साहेबजी की) पूज्य माताजी बा महाराज भी डोली में ऊपर गयीं। ९ बजे अभिषेक प्रारम्भ हुआ । दादा के शिखर पर ध्वजा चढ़ाने के लिए एक पुजारी ऊपर चढ़ा । ध्वजा चढ़ाकर नीचे उतरा, उसको सौ रुपये इनाम में दिए गए।
दादा की ध्वजा चढ़ने के साथ ही वातावरण बदलने लगा। साथ ही रिमझिम वर्षा चालू हो गई। मेरी ( साहेबजी की ) मातुश्री पाँच