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पर्युषणा - द्वितीय दिन
गुरुवाणी-२ उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। कर्माशा ने कहा - मित्र ऐसा मत कहिए। आप तो हमारे मालिक हैं। मेरी तो केवल एक ही अर्ज है कि जब भी आपको राज्य मिले उस समय मेरी जो उत्कृष्ट अभिलाषा है उसे आप अवश्य पूर्ण करें। शाहजादा बहादुरखान ने वचन दिया। कुछ दिन पश्चात् बहादुरखान वापस गुजरात की ओर चला। सोलहवाँ उद्धार कर्माशा का ....
इस ओर गुजरात में मुजफ्फर बादशाह की मृत्यु होने पर उसका पुत्र सिकन्दर गद्दी पर बैठा। वह अत्यन्त नीतिमान था, किन्तु दुर्जनों ने कुछ दिनों में ही उसे मौत के घाट उतार दिया। उसकी मृत्यु के समाचार बहादुरखान को मिले, वह शीघ्रता से चलता हुआ गुजरात पहुँचकर चाम्पानेर आया। विक्रम संवत् १५८३ में उसका राज्याभिषेक हुआ। उसने अपने साहस और चतुर बुद्धि से अनेक राजाओं को पराजित कर दिया। पूर्वावस्था में जिन-जिन व्यक्तियों ने उसकी सहायता की थी उन सब को अपने पास बुलाकर उनका उचित आदर-सत्कार किया। स्वयं पर नि:स्वार्थ उपकार करने वाले कर्माशा को बुलाने के लिए आज्ञापत्र भेजा। कर्माशा भी उनके योग्य भेंट लेकर वहाँ पहुँचा। कर्माशा के पहुँचने पर बादशाह स्वयं सन्मुख गया और प्रेम से आलिंगन किया। राज्यसभा में कर्माशा के निष्कारण परोपकारिता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। बादशाह ने कर्माशा के रहने के लिए एक सुन्दर शाहीमहल दिया। कुछ दिन कर्माशा वहाँ रहे। एक बार बादशाह ने प्रसन्नचित्त होकर कहा - मित्रवर! तुम्हारा क्या इष्ट करूँ? मेरे हृदय को खुश करने के लिए मेरे राज्य का कोई भी देश स्वीकार करो । कर्माशा ने कहा - राजन् ! आपकी कृपा से मेरे पास बहुत कुछ है। मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। आपसे केवल एक अनुमति चाहता हूँ। मुझे शजय तीर्थ पर मूर्ति की प्रतिष्ठा करवानी है, यह बात मैं आपको पहले भी कह चुका हूँ। यह सुनकर बादशाह ने कहा- हे कर्माशा! तुम्हारी जो इच्छा हो वह नि:शंक होकर पूर्ण करो। मैं