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पर्युषणा - द्वितीय दिन
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गुरुवाणी - २ बड़े व्यापारी थे । उनके पाँच पुत्र थे। गुरु महाराज के पधारने से पाँचों पुत्रों के साथ तोलाशा वन्दन करने के लिए आए। वन्दन के पश्चात् पूछा साहेब ! मेरे मन कि इच्छा - भावना पूरी होगी या नहीं? आचार्य भगवन् ज्ञानी थे, विचार कर उत्तर दिया - तोलाशा ! तुम्हारी भावना अवश्य पूर्ण होगी, किन्तु तुम्हारे पुत्र के हाथ से और मेरे शिष्यों के द्वारा। तोलाशा ने शकुनपूर्ण बात समझकर वस्त्र के किनारे गाँठ लगा ली। उनकी भावना शत्रुंजय तीर्थ पर भगवान की प्रतिष्ठा करवाने की थी । आचार्य महाराज ने स्वयं के दो शिष्य - विद्यामण्डनविजय और विनयमण्डनविजय को वहाँ चित्तौड़ में रख कर स्वयं ने विहार किया । चातुर्मास में कर्माशा आदि बहुत से लोग धर्म का अभ्यास करने लगे। एक समय कर्माशा ने आचार्य भगवन् को स्वकार्य की याद दिलायी। आचार्यदेव ने उन्हें एक चिन्तामणि मन्त्र दिया। कर्माशा उस मन्त्र का जाप करने लगे। कपड़े के बहुत बड़े व्यापारी थे । ग्राहकी खूब बढ़ी। आय भी बहुत अधिक होने लगी ।
गुजरात की राजधानी चाम्पानेर थी । मोहम्मद बेगड़ा राज्य करता था। उसने जूनागढ़ और पावागढ़ दो गढ़ जीत लिए थे इसीलिए वह बेगड़ा कहलाता था। मोहम्मद बेगड़ा की मृत्यु के पश्चात् मुजफ्फर बादशाह गद्दी पर आया। उसके छोटे भाई बहादुर खान को योग्य जागीरी न मिलने के कारण क्रोध से वह चला गया था । अनेक ग्रामों में फिरता हुआ वह चित्तौड़ आ पहुँचा। चित्तौड़ में कर्माशा का वस्त्रों का बहुत बड़ा व्यापार चलता था । बहादुरखान ने कर्माशा की दुकान से बहुत सारा कपड़ा खरीदा। इस प्रकार इन दोनों के बीच में मैत्री सम्बन्ध स्थापित हो गया। एक समय गोत्रदेवी ने स्वप्न में कर्माशा को कहा- इस बहादुरखान से तेरे कार्य कि सिद्धि होगी। देवी के वचनानुसार कर्माशा ने बहादुरखान के साथ गाढ़ परिचय बना लिया। शाहजादा के पास रुपये खत्म हो गए । बिना शर्त और लिखापढ़ी के कर्माशा ने उसको १ लाख रुपये दिये। शाहजादा बहुत आनन्दित हुआ और उसने कहा - हे मित्र ! मै तुम्हारा