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________________ गुरुवाणी - २ पर्युषणा- द्वितीय दिन ५१ वास्तविक परामर्श को प्रत्यक्ष करते हुए खड़े हैं। ऐसे तो अनेकों उत्तम कार्य करते हुए तीर्थयात्रा करके धोलका आए । धोलका में स्थायी निवास ... उस समय धोलका में वाघेला का राज्य था । व्याघ्रपल्ली से आकर बस जाने के कारण वे वाघेला कहलाए। वहाँ लवणप्रसाद का पुत्र वीरधवल का राज्य था। दोनों भाई धोलका में आकर रहने लगे। वहाँ राजपुरोहित सोमेश्वर से परिचय होता है। एक समय रात्रि में सिद्धराज की स्वर्गीया माता मीनल देवी ने इन दोनों पिता-पुत्रों को और नगर सेठ को स्वप्न में कहा - आज दो भाई आयेंगे, उनको मन्त्री बना देना। ये दोनों गुजरात को समृद्ध बनाएंगे। प्रातःकाल नगरसेठ और पिता- - पुत्र तीनों एकत्रित हुए तथा अपने - अपने स्वप्नों की बात की । राजपुरोहित को बुलाया । पुरोहित ने कहा- हाँ, दो भाई आये हुए हैं, वे दोनों बहुत ही चतुर, निपुण और प्रतिभा सम्पन्न हैं । मेरा उनके साथ अच्छा परिचय है। दोनों को राजसभा में बुलाया गया। थोड़ी देर वार्तालाप करने के पश्चात् उन्हें मन्त्रीमुद्रा स्वीकार करने के लिए कहा गया। मन्त्रीपद की जिम्मेदारी भी उनको बतलाई गई । वस्तुपाल ने विचार किया कि यदि राजा वश में होगा तो अनेक उत्तम कार्य होंगे। अतः राजा के समक्ष उन्होंने अपनी स्वयं की शर्तें रखीं। हम हमारी धर्मक्रिया सम्पन्न करने के बाद ही राजसभा में आयेंगे और हमारे पास इस समय तीन लाख की सम्पत्ति है वह आपको सौंपते हैं। यह तो राज्य कहलाता है। चाहे जब खटपट हो जाती है । राजा हमेशा कच्चे कान के होते हैं इसीलिए हमको जब मुक्त किया जाए उस समय यह सम्पत्ति हमको वापिस मिलनी चाहिए । शर्तें स्वीकृत हुईं, मन्त्रीमुद्रा स्वीकार की गई वस्तुपाल ने मन्त्रीपद स्वीकार किया और तेजपाल को सेनापति पद पर स्थापित किया। दोनों भाईयों को अच्छा स्थान और अच्छा पद मिल गया था । प्रारम्भ में तो कुछ ठाकुरों ने - ये तो वणिक हैं, इनमें युद्ध करने की शक्ति कहाँ से होगी? ऐसा सोचकर
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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