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________________ ५० पर्युषणा - द्वितीय दिन गुरुवाणी-२ आदि के कोई साधन नहीं थे । इस कारण से सम्पत्ति को जमीन में ही गाडते थे। अमुक प्रकार की कोई निशानी बना देते थे जिससे आवश्यकता पड़ने पर वहाँ से धन लिया जा सके। वे वहाँ गढ्ढा खोदते हैं किन्तु वहाँ तो पुण्यशाली ने पगले-पगले निधान अर्थात् पुण्यशाली जहाँ भी कदम रखता है वहाँ निधान प्रकट होता है । इस कहावत के अनुसार दूसरा निधान निकल गया । अब क्या करें? वस्तुपाल की पत्नी का नाम ललिता देवी था और तेजपाल की पत्नी का नाम अनुपमा था । वे दोनों बहुत ही निपुण और चतुर थीं। नामानुसार गुण थे । किन्तु चेहरे का रंग सांवला था । जब तेजपाल की सगाई हुई थी तब किसी ने आकर तेजपाल को कहा था कि तेरी पत्नी तो काली-कलूटी है । उस युग में शादी के पूर्व कोई भी एक-दूसरे को नहीं देखता था । उस समय तो माता-पिता जो करते वही सही होता था। उनके सामने कोई भी मुख नहीं खोलता था । आज युग बदल गया है। आज तो स्वयं ही खोज करते हैं । यही कारण है कि आज का जीवन विषमय बन गया है । तेजपाल ने विचार किया - माँ को तो कुछ कह नहीं सकते, तो क्या किया जाए? उसने क्षेत्रपाल देवता की मानता रखी। सगाई टूट जाएगी तो मैं अमुक धन खर्च करूगाँ । जीवन की भावी रेखा को कोई बदल नहीं सकता । मानता निष्फल हुई । विवाह करना ही पड़ा । विवाह के बाद उसके गुणों की सुवास सारे परिवार में फैल गई। स्वयं वस्तुपाल जेठ होने पर भी अनुपमा से परामर्श लेते थे । यहाँ भी निधान निकलते देखकर वे अनुपमा के पास राय लेने के लिए आए। राय मांगी। अनुपमा ने कहा- जेठजी ! आपको ऊँचे चढ़ते जाना है या नीचे जाना है? ऊँचे जाना हो तो इस धन को ऊँचे स्थान पर लगाओ और नीचे जाना हो तो नीचे जमीन में गाड दो। वस्तुपाल पूछते हैं - ऊँचा गाड़ना किस प्रकार का होता है? अनुपमा कहती है - मन्दिर, उपाश्रय, दानशालाएं और धर्मशालाएं बनवाइए । जनता देखे किन्तु एक कंकर भी नहीं ले सके। उसके बाद तो आबू के मन्दिर आज भी अनुपमा कि
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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