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________________ गुरुवाणी-२ पर्युषणा - द्वितीय दिन थे। उनके गुरु हरिभद्रसूरिजी महाराज थे। (याकिनी महत्तरासूनु नहीं) आचार्य महाराज ने कुमारदेवी की भाग्यरेखा देखकर आसराज के साथ उसका विवाह सम्बन्ध करवाया था। उस युग में कुलगुरु ऐसे काम कर देते थे। आचार्य भगवन्त ने देखा कि कुमारदेवी की संतानें महाभाग्यशाली एवं शासनरत्न होंगी। कालक्रम से कुमारदेवी ने चार पुत्रों को जन्म दिया। उनमें प्रथम पुत्र मल्लदेव जो यशस्वी पुरुषों में अग्रगण्य के रूप मे प्रख्यात हुआ। दूसरा पुत्र वस्तुपाल, तीसरा पुत्र तेजपाल और चौथा पुत्र था लुणिट्ठ। इन चार पुत्रों के बाद सात पुत्रियाँ हुई। संवत् १२२८ से १२९८ . के समय में आसराज मन्त्री कटोसण के पास सुंवाला गाँव में रहते थे। सुंवाला गाँव में आसराज का स्वर्गवास हुआ। दोनों भाई माता-पिता के परम भक्त थे। पिता के स्वर्गवास से उनको बहुत बड़ा आघात लगा। चारों और पिता की स्मृतियाँ ही फैली हुई नजर आती थीं। वे एक क्षण भी अपने पिता को भूल नहीं पाते थे। मनोव्यथा के अधिक बढ़ जाने से उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि पिताजी की स्मृतियों के बीच में हम जीवित नहीं रह सकेंगे।क्षण-क्षण में उनकी यादें बेचैन बना देती हैं। इसीलिए वे माता के साथ माण्डल आए। परमेश्वर के समान वे माता की भी भक्ति करते थे। समय आने पर माता का भी स्वर्गवास हो गया। आघातों से उनका दिल टूट गया। शोकमग्न हो गये। ऐसी स्थिति में मातृ पक्ष से मुनि बने हुए नरचन्द्रसूरिजी वहाँ पधारे। दोनों भाई गुरु महाराज को वन्दन करने के लिए गए। संसार की क्षणिकता को समझाने वाली देशना को सुनकर वे कुछ शोकमुक्त हुए। गुरु महाराज ने आदेश दिया कि तुम तीर्थयात्रा के लिए जाओ जिससे मन हल्का हो जाएगा। तीर्थयात्रा हेतु निकलते हैं। सारी सम्पत्ति साथ लेकर निकलते हैं। उस समय में गाँव-गाँव में सीमाएं बदल जाती थीं। लूटेरों का बहुत भय रहता था। इतनी सारी सम्पदा साथ लेकर घूमना जोखिम भरा था अतः उन्होंने यही निर्णय किया कि हडाला ग्राम के पास सम्पत्ति को जमीन में गाड़ कर आगे बढ़े। उस समय में बैंक
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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