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गुरुवाणी-२
पर्युषणा-प्रथम दिन विजयसेनसूरिजी का हृदय बैठ गया, अपशकुन हुए, अवरुद्ध कण्ठ से संघ के अग्रगण्यों से पूछा – गुरुदेव का स्वास्थ्य कैसा है। उत्तर मिला - गुरुदेव तो हमको छोड़कर चले गए। इन शब्दों को सुनने के साथ ही उनके हृदय पर ऐसा प्रबल आघात लगा कि विजयसेनसूरिजी बेभान होकर जमीन पर गिर पड़े। तीन दिन तक संज्ञाहीन रहे, अन्त में संज्ञा/चेतना में आने पर श्रावकों ने उन्हें समझाया, फिर भी गुरुदेव से मिलन नहीं हुआ इसका दुःख प्रकट करते हुए उनकी आँखों से आँसू झरते ही रहे, सूखे नहीं। तत्पश्चात् वे मुनियों के साथ ऊना आए और गुरुदेव की पादुका की भावपूर्वक वंदना की। अकबर बादशाह को भी सूरिजी के कालधर्म के समाचार भिजवाए गए। बादशाह भी रो पड़ा। ऐसे हिंसक बादशाह को अहिंसक बनाने वाले जगद्गुरु को हमारी भावभरी वंदना।
जो सम्पति अन्याय या अनीति से आती है वह सम्पत्ति आसुरी कहलाती है और न्याय से उपार्जित सम्पत्ति दैवी (अलौकिक) कहलाती है। आसुरी सम्पत्ति अशांति, व्याधि और क्लेश को साथ में लाती है जबकि दैवी सम्पत्ति शांति, आनंद और संप (मेल/ऐक्य) आदि को प्रदान करती है।
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