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________________ गुरुवाणी - २ सेन को सवाई पदवी .... पर्युषणा - प्रथम दिन ऊना में अन्तिम समय . बहुत समय व्यतीत होने पर गुजरात के श्रावकों ने सूरिजी से विनंती की - भगवन् आपके बिना गुजरात प्रदेश सूना पड़ा है। अब आप इस तरफ पधारिए । सूरिजी ने बादशाह के पास से जाने की अनुमति मांगी। बादशाह ने कहा आपके बिना मुझे धर्म कौन सुनाएगा? आप पधारते हैं तो पधारिए, किन्तु योग्य शिष्य को छोड़ते जाइए। बादशाह के आग्रह से सूरिजी ने विजयसेनसूरिजी को वहाँ रखकर गुजरात की ओर विहार किया। बाप की अपेक्षा बेटा सवाया होता है। उसी प्रकार सूरिजी की अपेक्षा भी विजयसेनसूरिजी सवाये निकले। बादशाह ने उनको सेन सवाई पदवी दी । ३९ .... सूरिजी गुजरात की तरफ विहार करते हुए पहले दादा की यात्रा के निमित्त सिद्धगिरि पहुँचे । अनेक संघों के साथ दादा की यात्रा भावपूर्वक सम्पन्न करके सूरिजी ने चौमासे के लिए ऊना की ओर प्रयाण किया । विक्रम संवत् १६५१ का चातुर्मास सूरिजी ने ऊना में ही किया । चातुर्मास पूर्ण हुआ और विहार के समय सूरिजी का शरीर रोगों से व्याप्त हो गया। विहार रुक गया। शरीर अधिक अस्वस्थ बन गया। उस समय उनके पाट के अधिकारी विजयसेनसूरिजी महाराज अकबर बादशाह के पास लाहौर में थे। सूरिजी को गच्छ - सुरक्षा की घोषणा करनी थी । अतः उन्होंने शिष्यों से कहा- विजयसेनसूरि शीघ्रातिशीघ्र यहाँ आवें ऐसा प्रयत्न करो। लाहौर समाचार पहुँचे । चातुर्मास में ही विजयसेनसूरि ने शीघ्र विहार प्रारम्भ किया । गुरुदेव से मिलने की किसको उत्कण्ठा नहीं होगी? लम्बे से लम्बे विहार करते रहे, किन्तु इधर सूरिजी की शारीरिक स्थिति गम्भीरं गम्भीर बनती गई । पर्युषण के दिन आये। शारीरिक दशा शोचनीय होने पर भी उन्होंने कल्पसूत्र का व्याख्यान दिया । व्याख्यान के परिश्रम से उनका शरीर अत्यधिक शिथिल हो गया । भादवा सुदि १० के दिन समस्त 1
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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