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___ गुरुवाणी-२
पर्युषणा-प्रथम दिन रही हुई कीड़ियों को भी इसने देख लिया। बादशाह के दिमाग में पहली मुलाकात में महाज्ञानी पुरुष के रूप में छाप पड़ गई। धीमे-धीमे प्रगाढ़ परिचय बनता गया। आचार्य की नई-नई बातों से बादशाह प्रसन्न हुआ। प्रत्येक मिलन के समय आचार्य महाराज से कुछ माँगने का निवेदन करता रहा। आचार्य महाराज ने कहा - मुझे तो किसी भी वस्तु की अपेक्षा नहीं है। 'पण खेर करो ने महेर करो' अर्थात् दुनिया पर दया करो और निरपराधी जीवों पर कृपा करो।
बादशाह इतना प्रभावित हो गया कि हीरसूरिजी महाराज जो कुछ भी कहते वह करने के लिए तैयार रहता। चौमासा आगरा में था। पर्युषण पर्व दिनों के आने पर श्रावकों ने बादशाह को जाकर निवेदन किया - आचार्य हीरसूरिजी ने आपको कहलाया है कि पर्युषण के आठ दिन हिंसा बंद रहे तो बहुत अच्छा है। यह सुनकर बादशाह ने कहा - गुरुदेव ने मेरे ऊपर कृपा-वर्षा की है। गंधार जैसे दूर प्रदेश से आने पर भी और मेरे निवेदन करने पर भी उन्होंने कभी याचना नहीं की। आज याचना की है तो वह भी प्राणियों के हित को दृष्टि में रखकर।आगे पीछे के दो-दो दिन
और जोड़कर आज्ञापत्र निकाला कि 'बारह दिन पर्यन्त कोई भी हिंसा नहीं करेगा। जो हिंसा करेगा उसको कठोर से कठोर दण्ड दिया जाएगा।' इस प्रकार का फरमान भी निकाल दिया। धीमे-धीमे सूरिजी ने बादशाह के पास से छ:-छ: महीने के फरमान प्रसारित करवा दिये। छः महीने तक सारे हिन्दुस्तान में हिंसा बंद करवा दी। डाबर सरोवर जिसका घेराव १० किलोमीटर था। वैसे तो वह जंगल था, किन्तु सरोवर के नाम से पहचाना जाता था। बादशाह शिकार का बहुत शौकीन था। इस जंगल में उसने हजारों प्राणियों को बन्दी बना रखा था। जिस दिन शिकार करने की इच्छा होती उस दिन वहाँ जाकर अनेक प्राणियों का व्यर्थ में वध करता
और आनन्द मनाता था। प्रसन्न हुए बादशाह के पास से सूरिजी ने डाबर सरोवर के जीव-जन्तुओं को जीवितदान दिलाया। बादशाह सम्पूर्ण रूप से अहिंसा का उपासक बन गया।