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________________ ३७ गुरुवाणी-२ पर्युषणा-प्रथम दिन अनुरोध किया - सूरिजी! आप मेरे अपराधों को भूल जाओ और मुझे क्षमा दान दो। मैंने पहले आपको बहुत परेशान किया था। बादशाह के आगे मेरी कोई शिकायत मत करना । मैं आपसे बारम्बार क्षमा मांगता हूँ। सूबेदार सियाबखान की बात सुनकर सूरिजी बोले - आप चिन्ता नहीं करें। हमें तो छोटी-छोटी बातों को याद करने का अवकाश ही कहाँ है? समस्त जीवों के प्रति हमारा प्रेमपूर्ण क्षमा भाव ही होता है। सूरिजी के वचनों से सियाबखान बहुत प्रसन्न हुआ। शाही फरमान के अनुसार हाथी, घोड़ा, पालकी आदि सामग्री उनके समक्ष प्रस्तुत की गई। सूरिजी ने उक्त सामग्री को अस्वीकार किया और कहा - हम तो अपरिग्रही हैं। इन परिग्रहों की हमें आवश्यकता नहीं है। सूरिजी के आदेशानुसार कई विद्वान् साधु पहले ही फतेहपुर सीकरी पहुँच गये। साधुओं ने गुप्त रूप से जानकारी प्राप्त कर आचार्य महाराज को सूचित किया - बादशाह की आपके प्रति पूर्ण भक्ति है। कुत्सित विचारों की गन्ध भी प्राप्त नहीं होती है अतः शीघ्र ही पधारने का निवेदन किया। दिल्ली में प्रवेशोत्सव और सम्राट से मिलन.... संघ के व्यक्तियों ने सूरीश्वरजी के आगमन के समाचार बादशाह को दिए। बादशाह ने अबुलफजुल को (सामैय्या) स्वागतोत्सव का कार्य सौंपा। सूरिजी राजा के महल में पधारे। अकबर सन्मुख आया। सूरिजी के प्रभावशाली मुखमुद्रा को देखते ही प्रभावित हो गया। राजमहल में पधरामणी कराता है। राजमहल में चारों ओर कारपेट बिछा हुआ है। सूरिजी कहते हैं - हम इसके ऊपर नहीं चल सकते। इसके नीचे यदि कोई जीव होगा तो वह मर जाएगा। बादशाह मन ही मन हँसा। प्रतिदिन जहाँ साफ-सफाई होती हो वहाँ जीव कैसे हो सकता है? किन्तु सूरिजी के कहने से कारपेट उठाया जाता है, उसके नीचे देखते हैं तो हजारों कीड़ियाँ घूमती हुई दिखाई देती है। यह दृश्य देखकर बादशाह आश्चर्यचकित हो जाता है। अरे! यह तो कोई महाओलिया दिखाई देता है। कारपेट के नीचे
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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