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________________ पर्युषणा-प्रथम दिन गुरुवाणी-२ बहन! तुम्हारा देव और गुरु कौन है? चम्पा ने उत्तर दिया, श@जय के शिखरों को शोभित करने वाले आदिनाथ दादा मेरे देव है और भारत की भूमि को शोभा प्रदान करने वाले पूज्य आचार्य महाराज हीरसूरीश्वरजी मेरे गुरु है। अकबर सोचता है - ओह ! हीरसूरि का नाम तो मैंने अनेकों बार सुना है। इस ओलिया पुरुष के तो मुझे दर्शन करने ही चाहिए। पुनः अकबर चम्पा से पूछता है - हीरसूरिजी अभी कहाँ विराजमान हैं? चम्पा कहती है - राजन् ! अभी वे गंधार में विराजमान हैं। अकबर ने तत्काल ही अहमदाबाद के सूबेदार को पत्र लिखवाया कि विजयहीरसूरिजी को शाही सम्मान के साथ फतेहपुर भेजो। अहमदाबाद के सूबेदार के हाथ में पत्र आने के साथ ही उसकी हालत बिगड़ गई। अमंगल की आशंका से वह भयभीत हो गया। अहमदाबाद के संघ के अग्रगण्यों को बुलाकर पत्र दिया। अहमदाबाद के प्रमुख लोग गंधार पहुँचे । साधुओं की शिष्ट मण्डली में पत्र पढ़ा गया। सभी साधु एक स्वर में बोल उठे - ऐसे क्रूर और घातकी बादशाह का विश्वास कैसे किया जाए? बादशाह कोई अयोग्य एवं अनुचित कार्य कर दे तो? संघ और समुदाय की इच्छा थी कि आचार्य भगवन् सम्राट के पास नहीं जावें, किन्तु अन्तिम निर्णय हीरसूरिजी महाराज के अधिकार में ही रखा। हीरसूरिजी महाराज ने कहा - लाखों को प्रतिबोध देने पर भी जो लाभ नहीं मिलता है, वह एक सम्राट को सबोध देने पर प्राप्त हो जाता है। कदाचित् मेरे निमित्त कारण से जैन शासन की प्रभावना होती हो तो यह अवसर गँवाना नहीं चाहिए। गंधार से दिल्ली की ओर विहार .... गुरुवर्य की दृढ़ता देखकर सभी ने मूक सम्मति दे दी। विक्रम संवत् १६३९ मार्गशीर्ष वदि ७ को गंधार से विहार किया। विद्वान् साधुओं का विशाल परिवार साथ में था। गाँव-गाँव में जैन धर्म के झण्डे को लहराते हुए हीरसूरिजी अहमदाबाद आए। शाही सम्मान से उनका नगर प्रवेश हुआ। एकान्त में अहमदाबाद के सूबेदार ने सूरिजी से विनम्र
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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